MANAV DHARM

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Thursday, March 7, 2013

परमात्मा इन्द्रियातीत है...!.........

"चर्म-चक्षुओ" से हम जो भी देखते है..वह सब "माया" का विस्तार है..!
पञ्च-ज्ञानेन्द्रियो से हम जो भी आस्वादन या अनुभव करते है..वह सब "नाशवान" है....क्षण-भंकुर है...आसक्ति ..मोह..भय..और अन्यान्य तमो गुण उत्पन्न करने वाला है..!
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परमात्मा इन्द्रियातीत है...!.........
इन्द्रियाँ परमात्मा की प्राप्ति में साधन नहीं..अपितु..बंधन है..!
जब तक इस स्थूल शरीर में विषयासक्ति उत्पन्न करने वाली इन्द्रियों के रस्ते बंद नहीं होगे...."दिव्य-शक्ति" का अपने अन्तः करण में अनुभव कदापि नहीं हो सकता है..!
****.इन्द्रिय-निग्रह...तभी संभव है..जबकि..इन्द्रियों के स्वामी ?मन" को सतत-साधन और साधना से वश के किया जाय..!
मन..को इन्द्रियों के विषयो से मोड़ कर..गुरु द्वारा बताये गए साधन और साधना-योग के अभ्यास से ही...यह योग सिद्ध होता है..और इन्द्रियों से परे..परम-प्रभु -परमेश्वर की प्राप्ति संभव होती है..!
परम-प्रभु-परमेश्वर की प्राप्ति ही इस मानव जीवन के समस्त कर्मो का ध्येय है..!
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ॐ श्री गुरुवे नमः.......!!!

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