MANAV DHARM

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Wednesday, March 13, 2013

...बिनु हरि कृपा मिलहि नहि सांता...!

रामचरितमानस में विभिशाना-हनुमानजी का मिलन इन शब्दों में संत शिरोमणि तुलसीदासजी द्वारा किया गया है..!......

अब मोहि भा भरोस हनुमंताजो रघुवीर अनुग्रह कीन्हा..सो ..तुम्ह मोहि दरस हठी दीन्हा...!!

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भाव स्पष्ट है.....
हरि-कृपा से ही संत-महान-पुरुषो का मिलन होता है..!
प्रभु श्रीरामचंद्रजी ने विभिशाना पर अनुग्रह किया ..इसलिए हनुमानजी ने ब्राह्मण भेष में उन्हें दर्शन दिया..!
प्रभु की अहेतु की कृपा हर जीव पर रहती है..तभी तो इस संसार में मानव शरीर पाकर जीव की चौरासी लाख योनियो की यंत्रणा से मुक्ति मिली है..!
जब हरि कृपा से संत-महान पुरुष का मिलन इस मानव शर्तीर से होगा....तब..माया-रूपी विष धीरे धीरे निष्प्रभावी होने लगेगा...और मुक्ति-मार्ग प्रशस्त होता जायेगा......!

संत महान पुरुष सदैव ही सुलभ रहते है...
सबहि सुलभ सब दिन सब देसा...सेवत सादा समन कलेसा..!
अकथ अलौकिक तीरथराऊ ..देहि सद्य फल प्रगट प्रभाउ..!!
यह एक ऐसा अलौकिक तीर्थ है..जहा जब मानव पहुच जाता है..तो सेवा का तत्चना फल मिलाता है..और सभी क्लेशो का नाश हो जाता है..!!

****ॐ श्री गुरुवे नमः.....!!

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