MANAV DHARM

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Friday, March 8, 2013

हरि सा हीरा छाडि के ..करे आन की आस..!

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हरि सा हीरा छाडि  के ..करे आन की आस..!
ते नर जमपुर जाइहे...सत भाषे  रैदास........!!
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....सनत रैदास जी कहते है....
परम-प्रभु परमेश्वर  रूपी हीरे को त्याग कर जो मनुष्य किसी एनी वास्तु की अभिलाषा करता है...वह अधोगामी होकर यमपुर की यातना सहता है..और अंत में नर्क को प्राप्त हित है..!
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भाव स्पष्ट है....
जो प्राप्त करने योग्य है..वाही "प्रभु-रूपी हीरा (प्रसाद) है...!
जो त्याज्य है..वाही आस्वक्ति-रूपी अभिलाषाए ( यातना) है..!
एक उर्ध्वगामी है..जो निवृत्ति-मार्ग पर ले जाती है..और जीवन-मुक्त कर देती है..!
एक अधोगामी है...जो प्रवृत्ति-मार्ग पर लपेट कर सुख०दुख और राग-द्वेषादि के बंधन में जकड देती है..!
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हे मानव...! जो प्राप्त करने का ध्येय है..उसे जानो .. और प्राप्त करने का सत्प्रयास करो...!
 .जो त्यागने योग्य है..उसका पर्त्याग करके जीवन को बंधन-मुक्त कर लो..!
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