MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Wednesday, January 19, 2011

Adhyatma..chintan...!

धर्मं  क्या  है..?योग  क्या  है..?  ज्ञान  क्या  है..?  मोक्ष  क्या  है..?
रामचरितमानस  में  गोस्वामी जी  कहते  है.....
"धर्मं  ते  विरति  योग  ते  गयाना..ज्ञान  मोक्षपद  वेद  बखाना..!!"
अर्थात....धर्मं  वह  है..जिससे  विरति  ( विरक्ति..वैराग्य..विश्रांति  )  प्राप्त  होती  है...!!
योग  वह  है  जिससे  ज्ञान  मिलता  है..और  ज्ञान
 वह  है..जिससे  मोक्ष  की  प्राप्ति  होती  है....!!
इसप्रकार  मानव मन  को  जिस  क्रियायोग  से  विरक्ति  या  शांति  मिलाती  है  वह  "धर्मं"  है...!
धारयेति  इति  धर्मः....अर्थात..जो  धारण  किया  जाता  है..वह  धर्मं  है....!
समस्त  पंचभूत  आत्माओं  में  एक  ही  तत्त्व  अर्थात...प्राण  या  स्वांश एक  समान   धारित  है..अतः..यही  प्राण  हमारा  आत्म--धर्मं  है...!आत्मा  की  अभिव्याक्ति  और  अनुभूति    मानव--मन  (श्रुति)  से  होती  है..इसलिए  यह  मानव--धर्मं  है...!!
इसप्रकार  धर्मं  एक  अनुभूति  है..जो  योग--क्रिया  से  प्राप्त  होता  है..और  जिसे  प्राप्त  हो  जाने  से  मानव  की  सहज--मुक्ति  होती  है...!!

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