MANAV DHARM

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Friday, January 14, 2011

satsabg--ganga..!

यह  संसार  क्या  है....??
ज्यो  अन्धो   का  हाथिया....!!
असलियत  तभी  पता   चलती  है....जबकि  ग्यान--चक्षु  खुल  जाते  है...!!
वेदान्त--दर्शन  में  सत्य  ही  कहा  है....
" ब्रह्मसत्यम  जगंमित्थ्या  जीवोब्रह्मेव्नापारह.....!!"
अर्थात   ब्रह्म  ही  सत्य  है..जगत  (संसार )  मित्था( स्वप्ना )  है..जिव  और  ब्रह्म  के  ऊपर  कोई  नही  है...!!
रामचरितमानस  में  शिवजी  उमाजी  से  कहते  है....
" उमा  कहहु  मै  अनुभव  अपना...सैट  हरि  भजन  जगत  सब  सपना..!"
अर्थात..परमात्मा  का  भजन  ही  सत्य  है..यह  संसार  स्वप्नवत  है....!!
अपनी  द्रिश्येंद्रियो..( चर्म  चक्षुओ )  से  हम  जो  भी  देखते  है..वह  सब  चर्ममय ( नाशवान ) ही  है...!! क्योकि  यह  सब  जाग्रत  अवस्था  में  ही  दृष्टिगोचर  होती  है..आँखे  बाद  कर  लेने  पर  सब  कुछ  तिरोहित  हो  जाता  है..!!
इसलिए  भृकुटी  के  मध्य  दिव्य  नेत्र  ( उपनयन )  स्थित  है..जो  मोक्ष  का  द्वार  है..!
इसी  नेत्र  से आज्ञा--चक्र  में  सद्गुरु--कृपा  से   हम अपनी  जीवनज्योति  का  दीदार  कर  सकते  है..!!
मन  की  एकाग्रता  से ध्यान--योग क्रिया  द्वारा  हम  परमात्मा  को  प्रत्यक्षतः  देख  और  उनके  रूप--अवरूप  का  अनुभव  कर  सकते  है...!!
यही  मानव--जीवन  की  महानता  है...!!

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