MANAV DHARM

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Friday, January 28, 2011

जीवन का यथार्थ...!

तुमत  जाने  बाबारे  मेरा   है  सब  कोय...!
प्राण  पिंड  से  बिंध  रहा  सो  अपना  नहि  होय...!!
...अर्थात....यह  शारी  श्रृष्टि  और  सारे  चराचर  जीव  सब  परमपिता  परमात्मा के  अंश  है...
लेकिन...मनुष्य  के  शारीर  में  समाया  हुआ  प्राण ( परमात्मा  का  अंश  )  स्थूल  शारीर  रूपी  पिंड  में  चुपड़ा ( बिंधा  हुआ )  हुआ  है....इसलिए  यह  अपना  होते  हुए  भी  अपना  नहि  है...!!
जैसे  दूध  में  मक्खन  समाया  हुआ  है..और  इसको  यत्न  पूर्वक  मथनी  से  हम  अलग  करते   है....वैसे  ही  निरंतर  योग--साधना  से  हम  अपने  अंश  ( प्राण )  को  शारीर ( पिंड )  से  अलग  करके  इसको  अपने  अंशी  ( परमात्मा )  से  मिलाने  में  सफल  हो  सकते  है...!!

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