MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Monday, January 31, 2011

मानव--जीवन का कटु सत्य

मानव--जीवन का कटु सत्य....>>
--------------------------
रे मन !..यह दो--दिन का मेला रहेगा..!
कायम न जग का झमेला रहेगा....कायम न जग का झमेला रहेगा...??
किस काम का तू ऊंचा महल बनाएगा..?
किस काम का तू लाखो का तोला कमाएगा..??
रथ--हाथिओ का झुण्ड तेरे किस काम आयेगा..??
जैसा तू आया था..वैसा ही जाएगा..!!
तेरे सफ़र में सवारी की खातिर...
तेरे कंधे पर ठठरी का ठेला रहेगा....रे मन ! यह दो--दिन का मेला रहेगा.......!

तू सोचता है कि यह धन आयेगा तेरे काम...?
अच्छा यह तो बता..! धन किसका हुआ गुलाम..??
समझा गए उपदेश में हरिश्चंद्र--कृष्ण--राम...!
दौलत तो छूटेगी..रहेगा प्रभु का नाम...!
तेरे कमर में धेला ना रहेगा.....रे मन..! यह दो--दिन का मेला रहेगा.....!!

साथी है मित्र तेरे गंगा--जल--पान तक..??
अर्धांगिनी भी चढ़ेगी तो केवल मकान तक..??
परिवार वाले भी चलेगे तो केवल श्मशान तक..??
बेटा भी हक़ निभाएगा तो केवल अग्निदान तक...??
इसके आगे तो भजन ही है साथी...!
हरि के भजन बिन अकेला रहेगा....! रे मन..! यह दो--दिन का मेला रहेगा.....!!

No comments:

Post a Comment