MANAV DHARM

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Wednesday, March 23, 2011

"आत्मा" नित्य है...!

"आत्मा" नित्य है...!
श्री मद भगवद गीत .अध्याय--2...श्लोक..१०..११..१२ में भगवन श्रीकृष्ण कहते है..
"हे अर्जुन...तू शोक ने करनेवालों के लिए शोक करता है और पंडितो जैसे बचन बोलता है..परन्तु पन्दितजन न मरे हो का शोक करते है और न जिन्दो का...क्योकि आत्मा नित्य है..! ऐसा कोई समय नहि था जब..मै..तू..या ये सब नहि थे..या सब आगे नहीं रहेगे..!
  आगे श्लोक --१३..१४..१५ में भगवन कहते है...
..जौसे मनुष्य की कुमार..युवा  और बृद्ध अवस्था होती है उसी तरह जीवात्मा की दुसरे शरीर की प्राप्ति होती है..! इस विषय में धीर पुरुष भ्रमित नहीं होता ..हे कुन्तीपुत्र अर्जुन..! तू स्व-सुख को देने वाले सर्दी-गर्मी तथा इन्द्रियों के विषय-भोग तो नाशवान और अनित्य है..! हे भारत..तू इसको सहन कर..हे पुरुष श्रेष्ठ ..दुःख-सुख को सामान समझाने वाले जिस धीर पुरुष को इन्द्रियों के विषय व्याकुल नहीं कर सकते ..वह मोक्ष के लिए योग्य होता है..!
आगे श्लोक..१६..१७..१८..१९ में भगवन कहते है...
..असत बस्तु का अस्तित्व  और सत का अभाव नहीं है..! इन दोनों का तत्व ज्ञानी पुरुषो में देखा  गया है..नाशरहित तो तू उसको जान ..जिस्दासे यह सारा जगत रचा गया है..!इस नाशरहित नित्य रहने वाले जीवात्मा के सब शरीर नाशवान है..! इसलिए हे अर्जुन..! तू युद्ध कर !जी इस आत्मा को मारा जाने  वाला या मरा मानते है..वह दोनों को ही नहीं जानते ..क्योकि यह आत्मा न मरता है  और न मारा  जाता है..!
आगे श्लोक..२०..२१..२२ में भगवान् कहते है...
...यह आत्मा  किसी समय भी न जन्मता है..और न मरता है..यह नित्य..अजन्मा  और अविनाशी  है..!जो आत्मा को अजन्मा और अविनाशी जनता है..वह किसको मारता और मरवाता है..??जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रो कोत्याग कर नए वस्त्रो को धारण करता है..वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर नये शरीर को प्राप्त करता है..!
आगे श्लोक..२३..२४ में भगवान कहते है...
..इसे न तो शास्त्र ही काट सकते है..न अग्नि ही जला सकती है..और इसे जल गीला नहीं कर सकता और वायु भी इसे सुखा नहीं सकती..! यह आत्मा अछेद्य है..न जलने व;अ है..न हीला होने वाला है न सुख सकता है..! यह नित्य..सबके अन्दर रहने वाला..सनातन है..!!

  आत्मा के सनातन स्वरूप की भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविंद से शब्दशः व्याख्या श्री मद भगवद गीत में उपरोक्तानुशार की गयी है..जो स्वतः स्पष्ट है..!
  जो धीर पुरुष तत्वदर्शी गुरु की कृपा से इस नित्य-सनातन आत्मा का ज्ञान प्राप्त करके इसका साधन करते है..वह सुख-दुःख और जन्म-मरण के शोक से मुक्त हो जाते है..!
  इसलिए हर मानव का यह पुनीत कर्तव्य है की..वह समय के तत्वदर्शी गुरु की खोज करके आत्म-ज्ञान प्राप्त करे और अपना मानव-जीवन सफल करे.!
....ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!!

1 comment:

  1. धर्म-शास्त्रों..ग्रंथो..वेद--उपनिषद्-पुराण..इत्यादि को पढ़--पढ़..किसी भी पुरुष को परमार्थ-सनातन-तत्व..की प्रत्यक्ष-अनुभूति नहीं हो सकती..!..तत्ववेत्ता-गुरु ही वह माध्यम है..जिसकी शरणागति से तत्व-ज्ञान का बीजारोपण जिज्ञासु के ह्रदय में होता है..! जैसे ही गुरु-कृपा और ताप-साधना से सनातन-तत्व का प्रत्यक्ष प्रकटीकरण हो जाता है..मन के द्वन्द और संकल्प-विकल्प को पूर्ण-विराम लग जाता है..!

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