MANAV DHARM

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Saturday, March 12, 2011

रसायन विज्ञान का सिद्धांत है.."संतृप्त-विलयन"..!

रसायन विज्ञान का सिद्धांत है.."संतृप्त-विलयन"..!
जैसे चीनी पानी में घुअलानाशील होती है..किन्तु..चीनी को पानी में घोलते--घोलते हम एक ऐसी अवस्था तक पहुचते है..कि..चीनी का पानी में घुलना बिलकुल बंद हो जाता है.. अर्थात..न तो चीनी पानी में घुल पाती है..और न ही पानी चीनी को घोल पाता है..!
इसी अवस्था को हम चीनी का संतृप्त-विलयन कहते है..!
..यही सिद्धांत हमारे शरीर में चल रही स्वांश की पान--अपान क्रिया पर भी लागु होती है..
..गुरु-कृपा से जब एक साधाक को ध्येय-बस्तु और ध्यान की क्रिया-योंग-विधि का विधिवत ज्ञान हो जाता है..तो प्राणायाम की क्रिया में पान--अपान की क्रिया का संत्रिप्तीकरण अर्थात समानता (Equillibrium)की स्थिति गुरु-कृपा से प्राप्त होने लगाती है..जिससे साधक की शारीरिक (पञ्च भौतिक) और मनसिक(चिंतन-मनन) स्थिति सहज--सरल-सुगम हो जाती है..!
..इस स्थिति में ध्यान--ध्येय-ध्याता..>>..भक्त--भक्ति--भगवान का एकीकरण हो जाता है..जिसे हम समत्व-योंग कहते है..!
यही योंग मानव जीवन की सुखद-अनुभूतियो से परिपूर्ण कर देता है..!
..धन्य है..वह सदगुरुदेव महाराज जी ..जिसकी दया--कृपा से यह योंग फलीभूत जोता है और धन्य है वह साधक..जिन्हें गुरु महाराज जी की इसी अप्रतिम - अनमोल कृपा अपने प्रारब्ध-सत्कर्मो से प्राप्त होती है..!
..ॐ श्री सद्गुरुचरण कमलेभ्यो नमः...!!

1 comment:

  1. जिसको प्यास लगाती है..वह पानी की तलाश में जाता है..पानी खुद चल कर उसके पास नहीं आता..छाये की जरुरत होने पर छायेदार पेड़ के नीचे जाकर छाया का आनंद लेता है..खुद छाया उसके पास चल कर नहीं आती...ऐसे ही..अपना कल्याण चाहने वालो को कल्याण कारी सर्वज्ञ -सर्व-सम्पूर्ण सद्गुरु की खोज करनी चाहिए..न कि दूसरो के बताये हुए गुरु का अन्धानुकरण करना चाहिए..??
    जिस नाव को जिस घाट पर लगाना होता है..वह वही जाकर लगती है ऐसे ही..जिसके भाग्य में जो मिलाना है..वह उसको मिलाता है..! लाख सर पटकने या भटकने से कुछ नहीं होता..??

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