MANAV DHARM

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Tuesday, March 22, 2011

श्री विष्णु भगवान की आरती

 
श्री विष्णु भगवान की आरती

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।

भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ \ जय ..
...
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।

सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ \ जय ..

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ \ जय ..

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ \ जय ..

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।

मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ \ जय ..

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥ \ जय ..

दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ \ जय ..

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ \ जय ..
जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।

मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय..

आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।

अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय..

अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।

सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय..

विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।

विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय..

माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।

विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय..

साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।

केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय..

राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।

मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय..

सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।

प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय..
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।

पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..

श्री रामकृष्ण गोपाल दामोदर, नारायण नरसिंह हरी।

जहां-जहां भीर पडी भक्तों पर, तहां-तहां रक्षा आप करी॥ श्री रामकृष्ण ..

भीर पडी प्रहलाद भक्त पर, नरसिंह अवतार लिया।

अपने भक्तों की रक्षा कारण, हिरणाकुश को मार दिया॥ श्री रामकृष्ण ..

होने लगी जब नग्न द्रोपदी, दु:शासन चीर हरण किया।

अरब-खरब के वस्त्र देकर आस पास प्रभु फिरने लगे॥ श्री रामकृष्ण ..

गज की टेर सुनी मेरे मोहन तत्काल प्रभु उठ धाये।

जौ भर सूंड रहे जल ऊपर, ऐसे गज को खेंच लिया॥ श्री रामकृष्ण ..

नामदेव की गउआ बाईया, नरसी हुण्डी को तारा।

माता-पिता के फन्द छुडाये, हाँ! कंस दुशासन को मारा॥ श्री रामकृष्ण ..

जैसी कृपा भक्तों पर कीनी हाँ करो मेरे गिरधारी।

तेरे दास की यही भावना दर्श दियो मैंनू गिरधारी॥ श्री रामकृष्ण ..

श्री रामकृष्ण गोपाल दामोदर नारायण नरसिंह हरि।

जहां-जहां भीर पडी भक्तों पर वहां-वहां रक्षा आप करी॥

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