अध्यात्म और विज्ञानं का समन्वय आधुनिक विश्व की जीवंत-आवश्यकता है..!
भौतिक-जगत में अधुनातन खोज यदि विज्ञानं का विषय है..तो अंतर्जगत में आत्म-अन्वेषण--अनुभूति अध्यात्म का विषय है..!
विज्ञान जिस क्रिया--प्रतिक्रया के सिद्धांत पार चल रहा है..अध्यात्म में इसका प्रतिपादन
श्रृष्टि के प्रारंभ से ही प्रगट है..!
अध्यात्म और विज्ञानं के सिद्धांत एक ही है..किन्तु कार्य और पूर्ति की दिशाए एक दुसरे के विपरीत है..!
विज्ञान की गति बहिर्जगत में है..जबकि अध्यात्म अंतर्जगत में क्रियाशील है..!
एक अपरा-जगत तो दूसरा परा-जगत में क्रियाशील है.!
विज्ञान कहता है....खोजो..गिर देखो..तब मानो..!
अध्यात्म कहता है....मानो..फिर खोजो तब देखो..!
विज्ञानं में किसी बस्तु-विशेष के अस्तित्व की खोज होने पार जब तक उसको प्रयोग-शाला में सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से नहीं देख-परख लेते है..तब तक उसके अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते है...
जबकि अध्यात्म में पहले यह मानते है की परमात्मा है..जो सर्वव्यापक है..फिर उसको अपने घट के अन्दर खोजते है..और उसका फिर दीदार करते है..!
इसप्रकार दिशाए विपरीत है..सिद्धांत एक ही है..!
अध्यात्म कहता है..शक्ति अविनाशी..अजन्मा और सनातन है..विज्ञानं कहता है..शक्ति का न तो सृजन होता है और ना ही इसका नाश होता है..!
विज्ञान कहता है..प्रत्येक क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है..जैसे हम जितने वेग से एक गेद दीवाल की तरफ फेकेगे..वह उतनी ही वेग से फिर वापस लौटेगी..गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत भी इसी पर प्रतिपादित है.!
अध्यात्म भी स्विका करता है..की..जो इस लोक में जन्म लेता है..उसकी आयु पूरी होने पर मृत्यु भी होती है..आया है..सो जाएगा...! जैसा बोयेगा..वैसा ही काटेगा..! अर्थात..द्वन्द यहाँ भी है लेकिन यह सनातन सत्य पर टिका है..!
विज्ञान के आविष्कार ने इलेक्ट्रोनिक्स पर आधारित सूचना-प्रोद्द्योगिकी--दूर--संचार तकनीक विअक्सित कर ली है.जो मूलतः जीवन की एक इकाई..कोशिका में बिखरे हुए एक्क्ट्रोंस--प्रोतोंस नयूत्रोंस के साद्रश्य है..विज्ञान कहता है..प्रत्येक कोशिका का एक केंद्र है..जहा अगाध शक्ति छिपी हुयी है..अध्यात्म कहता है...एक बिंदु से सब कुछ बना है..जो सबका साक्षी है..!
यही सब बीजो-का-बीज है..!
विज्ञानं ने इंसान नहीं बनाया..लेकिन रोबोट बना लिया..पंक्षी नहीं बनाया..लेकिन हवाई-जहाज बना लिया..मछली नहीं बनाया लेकिन पनडुब्बी बना लिया..परखनली में शिशु जन्मा लिया..blood transfusion कर लिया..अन्गंगो का प्रत्यारोपण कर लिया..मौसम पर विजय प्राप्त कर ली..ari condirioner बनाकर सब मौसम एक सामान कर लिया..फिर भी.....गणेश जी की तरह हेड-ट्रांसप्लांट नहीं कर सके..और..अंततः...
जब मानव के घट से स्वानसे निकल जाती है..तो वह कहने लगता है...सॉरी...he is dead..!
इसप्रकार यह सिद्ध है..कि विज्ञान अध्यात्म के बहुत पीछे ही है..!
जो कुछ बाह्य-जगत में हम घटित होते देखते है..वह सब प्रतीकात्मक है..और इसका प्रत्यक्षीकरण अंतर्जगत में अपनी चेतना से चेतना में स्थित होकर एक साधक-योगी सब कुछ नजारा कर केता है..और अपना जीवन धन्य कर लेता है..!
इसीलिए..शधना की आज अप्रतिम..अतीव आवश्यकता है..जिसका ज्ञान तत्वदर्शी-गुरु से ही प्राप्त होता है..!
भौतिक-जगत में अधुनातन खोज यदि विज्ञानं का विषय है..तो अंतर्जगत में आत्म-अन्वेषण--अनुभूति अध्यात्म का विषय है..!
विज्ञान जिस क्रिया--प्रतिक्रया के सिद्धांत पार चल रहा है..अध्यात्म में इसका प्रतिपादन
श्रृष्टि के प्रारंभ से ही प्रगट है..!
अध्यात्म और विज्ञानं के सिद्धांत एक ही है..किन्तु कार्य और पूर्ति की दिशाए एक दुसरे के विपरीत है..!
विज्ञान की गति बहिर्जगत में है..जबकि अध्यात्म अंतर्जगत में क्रियाशील है..!
एक अपरा-जगत तो दूसरा परा-जगत में क्रियाशील है.!
विज्ञान कहता है....खोजो..गिर देखो..तब मानो..!
अध्यात्म कहता है....मानो..फिर खोजो तब देखो..!
विज्ञानं में किसी बस्तु-विशेष के अस्तित्व की खोज होने पार जब तक उसको प्रयोग-शाला में सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से नहीं देख-परख लेते है..तब तक उसके अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते है...
जबकि अध्यात्म में पहले यह मानते है की परमात्मा है..जो सर्वव्यापक है..फिर उसको अपने घट के अन्दर खोजते है..और उसका फिर दीदार करते है..!
इसप्रकार दिशाए विपरीत है..सिद्धांत एक ही है..!
अध्यात्म कहता है..शक्ति अविनाशी..अजन्मा और सनातन है..विज्ञानं कहता है..शक्ति का न तो सृजन होता है और ना ही इसका नाश होता है..!
विज्ञान कहता है..प्रत्येक क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है..जैसे हम जितने वेग से एक गेद दीवाल की तरफ फेकेगे..वह उतनी ही वेग से फिर वापस लौटेगी..गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत भी इसी पर प्रतिपादित है.!
अध्यात्म भी स्विका करता है..की..जो इस लोक में जन्म लेता है..उसकी आयु पूरी होने पर मृत्यु भी होती है..आया है..सो जाएगा...! जैसा बोयेगा..वैसा ही काटेगा..! अर्थात..द्वन्द यहाँ भी है लेकिन यह सनातन सत्य पर टिका है..!
विज्ञान के आविष्कार ने इलेक्ट्रोनिक्स पर आधारित सूचना-प्रोद्द्योगिकी--दूर--संचार तकनीक विअक्सित कर ली है.जो मूलतः जीवन की एक इकाई..कोशिका में बिखरे हुए एक्क्ट्रोंस--प्रोतोंस नयूत्रोंस के साद्रश्य है..विज्ञान कहता है..प्रत्येक कोशिका का एक केंद्र है..जहा अगाध शक्ति छिपी हुयी है..अध्यात्म कहता है...एक बिंदु से सब कुछ बना है..जो सबका साक्षी है..!
यही सब बीजो-का-बीज है..!
विज्ञानं ने इंसान नहीं बनाया..लेकिन रोबोट बना लिया..पंक्षी नहीं बनाया..लेकिन हवाई-जहाज बना लिया..मछली नहीं बनाया लेकिन पनडुब्बी बना लिया..परखनली में शिशु जन्मा लिया..blood transfusion कर लिया..अन्गंगो का प्रत्यारोपण कर लिया..मौसम पर विजय प्राप्त कर ली..ari condirioner बनाकर सब मौसम एक सामान कर लिया..फिर भी.....गणेश जी की तरह हेड-ट्रांसप्लांट नहीं कर सके..और..अंततः...
जब मानव के घट से स्वानसे निकल जाती है..तो वह कहने लगता है...सॉरी...he is dead..!
इसप्रकार यह सिद्ध है..कि विज्ञान अध्यात्म के बहुत पीछे ही है..!
जो कुछ बाह्य-जगत में हम घटित होते देखते है..वह सब प्रतीकात्मक है..और इसका प्रत्यक्षीकरण अंतर्जगत में अपनी चेतना से चेतना में स्थित होकर एक साधक-योगी सब कुछ नजारा कर केता है..और अपना जीवन धन्य कर लेता है..!
इसीलिए..शधना की आज अप्रतिम..अतीव आवश्यकता है..जिसका ज्ञान तत्वदर्शी-गुरु से ही प्राप्त होता है..!
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