कबीर साहेब क्लाहते है....
"जिन खोजा तिन पाइयां..गहरे पानी पैठि..मै बपुरा बुडन डरा..रहा किनारे बैठि..!
बस्तु कही ढूढे कही..केहि बिधि आये हाथ ?
कहे कबीर बस्तु तब पाइए..भेदी लीजे साथ..!!
भेदु लीन्हा साथ जब..बस्तु दई लखाय..कोटि जन्म का पंथ था पल में पहुंचा जाय..!!
...भाव स्पष्ट है..जो गहराई में जाकर खोजते है..उनको प्रभु के दर्शन हो जाते है..और जो डूबने से दर जाते है..वह किनारे ही पड़े रहते है..!
..आगे कबीर साहेब कहते है..लोगो की यह हालत है कि..बस्तु (परमात्मा) कही और जगह है..और उसको ढूढते कही दूसरी जगह है..तो यह कैसे हाथ लगे..?
..कबीर साहेब कहते है..इस बस्तु (परमात्मा) की तभी प्राप्ति होगी..जब भेदी साथ में रहेगे..!
..जब भेदी साथ में आ लगते है..तो वह उस बस्तु (परमात्मा) को दिखा देते है..!
..और बस्तु ऐसी है..की..बिना भेदी (गुरु) के मिलाती नहीं..यह सफ़र करोडो जन्म का है..लेकिन भेदी (गुरु) के साथ आ मिलते ही..कुछ ही पल में हम वहा पहुच जाते है..!!
इसी बात को गोस्वामी तुलसी दासजी ने रामचरितमानस में इन शब्दों में व्यक्त किया है...
"गुरु बिन होय कि ज्ञान..ज्ञान कि होय विराग बिनु..?
गावहि वेद-पुराण..सुख कि लहही हरि भगति बिनु..??"
.......गुरु के बिना आत्मा--और--परमात्मा दोनों का ही ज्ञान नहीं होता..?और..इन्द्रियों को विषय--भोगो से हटाये बिना ज्ञान (आत्मा-तत्त्व-वोध) भी नहीं होता..! बिना प्रभु कि भक्ति कए जीवन में सुख--शांति भी नहीं प्राप्त होती..ऐसा वेदों और पुरानो ने इसकी महिमा गई है..!
..गोस्वामी जी कहते है...
बन्दे वोधामयम नित्यं..गुरुम शंकर रुपिनम..यमाश्रितो हि बक्रोपी चन्द्रः सर्वत्र बंदते..!!
..गुरु साक्षात शिव के सामान है..इसलिए नित्य ही गुरु कि बंदना करनी चाहिए..!
............ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!
"जिन खोजा तिन पाइयां..गहरे पानी पैठि..मै बपुरा बुडन डरा..रहा किनारे बैठि..!
बस्तु कही ढूढे कही..केहि बिधि आये हाथ ?
कहे कबीर बस्तु तब पाइए..भेदी लीजे साथ..!!
भेदु लीन्हा साथ जब..बस्तु दई लखाय..कोटि जन्म का पंथ था पल में पहुंचा जाय..!!
...भाव स्पष्ट है..जो गहराई में जाकर खोजते है..उनको प्रभु के दर्शन हो जाते है..और जो डूबने से दर जाते है..वह किनारे ही पड़े रहते है..!
..आगे कबीर साहेब कहते है..लोगो की यह हालत है कि..बस्तु (परमात्मा) कही और जगह है..और उसको ढूढते कही दूसरी जगह है..तो यह कैसे हाथ लगे..?
..कबीर साहेब कहते है..इस बस्तु (परमात्मा) की तभी प्राप्ति होगी..जब भेदी साथ में रहेगे..!
..जब भेदी साथ में आ लगते है..तो वह उस बस्तु (परमात्मा) को दिखा देते है..!
..और बस्तु ऐसी है..की..बिना भेदी (गुरु) के मिलाती नहीं..यह सफ़र करोडो जन्म का है..लेकिन भेदी (गुरु) के साथ आ मिलते ही..कुछ ही पल में हम वहा पहुच जाते है..!!
इसी बात को गोस्वामी तुलसी दासजी ने रामचरितमानस में इन शब्दों में व्यक्त किया है...
"गुरु बिन होय कि ज्ञान..ज्ञान कि होय विराग बिनु..?
गावहि वेद-पुराण..सुख कि लहही हरि भगति बिनु..??"
.......गुरु के बिना आत्मा--और--परमात्मा दोनों का ही ज्ञान नहीं होता..?और..इन्द्रियों को विषय--भोगो से हटाये बिना ज्ञान (आत्मा-तत्त्व-वोध) भी नहीं होता..! बिना प्रभु कि भक्ति कए जीवन में सुख--शांति भी नहीं प्राप्त होती..ऐसा वेदों और पुरानो ने इसकी महिमा गई है..!
..गोस्वामी जी कहते है...
बन्दे वोधामयम नित्यं..गुरुम शंकर रुपिनम..यमाश्रितो हि बक्रोपी चन्द्रः सर्वत्र बंदते..!!
..गुरु साक्षात शिव के सामान है..इसलिए नित्य ही गुरु कि बंदना करनी चाहिए..!
............ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!
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