रामचरितमानस में संत-शिरोमणि तुलसीदासजी कहते है...
"सुनहु तात माया-कृत गुन अरु दोष अनेक..गुन यह उभय न देखिहई देखिय सो अविवेक..!!
..अर्थात इस मायामय संसार में जितने भी गुन और दोष है..सब माया द्वारा विरचित है..! गुन (अच्छाई) इसी में निहित है कि ..!..इन माया द्वारा विरचित गुन-दोष की तरफ बिलकुल ही द्र्श्तिपात न किया जाय..!
..जैसे परमात्मा त्रिगुण-संपन्न होते हुए भी त्रिगुणातीत है..और सबमे समाया हुआ है..फिर भी निर्लेप है..वैसे ही सतोगुण..रजोगुण और तमोगुण से उत्पन्न हुए गुन-दोषों में निर्लेप व निरपेक्ष रहते हुए एक ज्ञानी एकरस परमात्मा में सदैव निर्विकार--निर्लिप्त भाव से ध्यानावस्थित रहता है..!
इसे ही वैराग्य-वान पुरुष कहा गया है..!
गोस्वामी जी आगे कहते है...
कहहु तात सो परम विरागी..तृण सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी..!!!
अर्थात..वही परम वैराग्यवान है..जो तिनके के समान तीनो गुणों और सिद्धियों का परित्याग कर देता है..!
..ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!!
"सुनहु तात माया-कृत गुन अरु दोष अनेक..गुन यह उभय न देखिहई देखिय सो अविवेक..!!
..अर्थात इस मायामय संसार में जितने भी गुन और दोष है..सब माया द्वारा विरचित है..! गुन (अच्छाई) इसी में निहित है कि ..!..इन माया द्वारा विरचित गुन-दोष की तरफ बिलकुल ही द्र्श्तिपात न किया जाय..!
..जैसे परमात्मा त्रिगुण-संपन्न होते हुए भी त्रिगुणातीत है..और सबमे समाया हुआ है..फिर भी निर्लेप है..वैसे ही सतोगुण..रजोगुण और तमोगुण से उत्पन्न हुए गुन-दोषों में निर्लेप व निरपेक्ष रहते हुए एक ज्ञानी एकरस परमात्मा में सदैव निर्विकार--निर्लिप्त भाव से ध्यानावस्थित रहता है..!
इसे ही वैराग्य-वान पुरुष कहा गया है..!
गोस्वामी जी आगे कहते है...
कहहु तात सो परम विरागी..तृण सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी..!!!
अर्थात..वही परम वैराग्यवान है..जो तिनके के समान तीनो गुणों और सिद्धियों का परित्याग कर देता है..!
..ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!!
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