मानव-जीवन में जन्म से लेकर अंत तक जो बस्तु सदैव साथ रहती है..उसको जानने ..प्राप्त कानने और उसमे लीन होने का प्रयास करना ही मनुष्य के जीवन का वास्तविक उद्देश्य है..!
..विचार करने की बात है कि वह बस्तु क्या है..?
..वह ऐसी अनमोल "बस्तु" है..जिसके रहने से यह जीवन है..यह वैभव है..यह पद-प्रतिष्ठा है..यह सुख-संपदा है..संसार में नाते-रिश्ते है. ख़ुशी और गम है .अर्थात सब-कुछ है..!
..लोग सोचते और खोजते ही रह जाते है..और जीवन व्यर्थ चला जाता है..!
..मानव उसकी परवाह नहीं करता..जो अनमोल है..सदैव-साथ है..अपितु परवाह धन-दौलत..इष्ट-मित्र..पद-प्रतिष्ठा..सुख-सम्पदा..बन्धु-वान्धाव..नाते-रिश्ते..इत्यादि की करता रह जाता है..और जीवन की गाड़ी बहुत दूर निकल जाती है..वापस लाना नामुमकिन हो जाता है..!
..लाख-टेक की बात है..मानव को जीवंत..सुखी..और संपन्न रखने वाली यह प्राण-ऊर्जा.."श्वासें " बहुत अनमोल है..!
यह जितना ही खर्च होगी..मानव-जीवन उतना ही अपनी-आयु खोता जायेगा..जीतनी ही इसकी बचत होगी..जीवन उतना ही आगे बढ़ जायेगा..!
..जन्म से यह "श्वांसे " गिन कर साथ आती है..और इसी में ही सारा जीवन रचा-वसा है !
..यहि सारे जीवन सदैव साथ रहती है..और इसी के पीछे जीवन ..सुख..शान्ति-संतुष्टि.सम्पन्नता..और मुक्ति का रहस्य छिपा जुआ है..!
..इन्ही श्वांसो में प्रभु की लीलाए भी छिपी हुयी है..जिसका दीदार घट-भीतर होता है..घट-बाहर केवल संसार का नजारा है..जो मानव को बहिर्मुखी बनादेता है..!
..जब हम इस श्वांसो के यथार्थ-ज्ञान को जान०समझ लेते है..तो जीवन के वास्तविक ध्येय की डगर पर चाल पड़ते है..!
..एक मानव की जिंदगी चार-अवस्थाओं से गुजराती है...!
जाग्रत..स्वप्न..सुषुप्ति..और तुरीय..!
..प्रथम तीन अवस्थाओं में हर कोई जीता है और खोता है..! खोता इसलिए है की..इन अवस्थाओं में श्वांसे खर्च ही होती रहती है..!
..जब सौभाग्य से संत-महान-पुरुष की समीपता मिलाती है..और "आत्म-तत्व" का ज्ञान होता है..तब इन श्वांसो के पीछे की असलियत का अभिज्ञान होता है..और..तप -साधना..गुरु-कृपा..सेवा-सत्संग-समर्पण से ..निरंतर..भजन--सुमिरन-अभ्यास से इन श्वांसो की सिद्धि प्राप्त हो जाती है..और साधक तुरीय हो जाता है..!
"तुरीयावस्था" एक ऐसी अवस्था है..जिसको प्राप्त करने हेतु ही यह मानव-जीवन मिला है..और इसी को प्राप्त काके ही संसार-सागर से पार उतरा जा सकता है..!
..इसलिए हर मानव को अपने इस अनमोल खजाने को समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष की शरणागत होकर इसका ज्ञान प्राप्त करके अपना जीवन धन्य करना चाहिए..!
...ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः......!
..विचार करने की बात है कि वह बस्तु क्या है..?
..वह ऐसी अनमोल "बस्तु" है..जिसके रहने से यह जीवन है..यह वैभव है..यह पद-प्रतिष्ठा है..यह सुख-संपदा है..संसार में नाते-रिश्ते है. ख़ुशी और गम है .अर्थात सब-कुछ है..!
..लोग सोचते और खोजते ही रह जाते है..और जीवन व्यर्थ चला जाता है..!
..मानव उसकी परवाह नहीं करता..जो अनमोल है..सदैव-साथ है..अपितु परवाह धन-दौलत..इष्ट-मित्र..पद-प्रतिष्ठा..सुख-सम्पदा..बन्धु-वान्धाव..नाते-रिश्ते..इत्यादि की करता रह जाता है..और जीवन की गाड़ी बहुत दूर निकल जाती है..वापस लाना नामुमकिन हो जाता है..!
..लाख-टेक की बात है..मानव को जीवंत..सुखी..और संपन्न रखने वाली यह प्राण-ऊर्जा.."श्वासें " बहुत अनमोल है..!
यह जितना ही खर्च होगी..मानव-जीवन उतना ही अपनी-आयु खोता जायेगा..जीतनी ही इसकी बचत होगी..जीवन उतना ही आगे बढ़ जायेगा..!
..जन्म से यह "श्वांसे " गिन कर साथ आती है..और इसी में ही सारा जीवन रचा-वसा है !
..यहि सारे जीवन सदैव साथ रहती है..और इसी के पीछे जीवन ..सुख..शान्ति-संतुष्टि.सम्पन्नता..और मुक्ति का रहस्य छिपा जुआ है..!
..इन्ही श्वांसो में प्रभु की लीलाए भी छिपी हुयी है..जिसका दीदार घट-भीतर होता है..घट-बाहर केवल संसार का नजारा है..जो मानव को बहिर्मुखी बनादेता है..!
..जब हम इस श्वांसो के यथार्थ-ज्ञान को जान०समझ लेते है..तो जीवन के वास्तविक ध्येय की डगर पर चाल पड़ते है..!
..एक मानव की जिंदगी चार-अवस्थाओं से गुजराती है...!
जाग्रत..स्वप्न..सुषुप्ति..और तुरीय..!
..प्रथम तीन अवस्थाओं में हर कोई जीता है और खोता है..! खोता इसलिए है की..इन अवस्थाओं में श्वांसे खर्च ही होती रहती है..!
..जब सौभाग्य से संत-महान-पुरुष की समीपता मिलाती है..और "आत्म-तत्व" का ज्ञान होता है..तब इन श्वांसो के पीछे की असलियत का अभिज्ञान होता है..और..तप -साधना..गुरु-कृपा..सेवा-सत्संग-समर्पण से ..निरंतर..भजन--सुमिरन-अभ्यास से इन श्वांसो की सिद्धि प्राप्त हो जाती है..और साधक तुरीय हो जाता है..!
"तुरीयावस्था" एक ऐसी अवस्था है..जिसको प्राप्त करने हेतु ही यह मानव-जीवन मिला है..और इसी को प्राप्त काके ही संसार-सागर से पार उतरा जा सकता है..!
..इसलिए हर मानव को अपने इस अनमोल खजाने को समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष की शरणागत होकर इसका ज्ञान प्राप्त करके अपना जीवन धन्य करना चाहिए..!
...ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः......!
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