MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Sunday, March 13, 2011

.." बरसहि जलद भूमि नियराये..जथा नवहि बुध विद्या पाए...!"

"गुरु" एक ऐसा शब्द है..जिसको सुनते ही व्यके क्ति  ह्रदय मे श्रद्धा..विशवास और प्रेम उत्पन्न होने लगता है..!जन्म से लेकर अनत तक व्यक्ति का इससे बिभिन्न रूपों मे वास्ता पड़ता है..!
भौतिक दृष्टि से देखे..तो बच्चे को जन्म देने वाली माँ उसके लिए प्रथम-गुरु गोटी है..मान ही बच्चे को इस संसार मे उसके सगे बंधू-बान्धवों ..पिता और अन्यान्य कुटुम्बियो से प्रत्यक्ष परिचय कराती है..!
जब तक बच्चा माँ की छात्र-छाया मे पलता-बढ़ता और सिखाता है..माँ ही उसके लिए गुरु रहती है..!
विद्योपार्जन के लिए जाने पार पाठशाला और आगे के अध्ययन की स्तरों पार बिभिन्न विषयो के ज्ञाता--गुरु मिलते है..जिससे नाना-प्रकार के विषयो का ज्ञान और अभ्यास सीखने को मिलाता है..!
जीवन के व्यावहारिक क्षेत्र मे उतरने पर हुनर सिखाने वाले ताजुर्वेकार-गुरु मिलते है..!इस प्रकार व्यक्ति-बालक..जीवन भर श्रेष्ठ लोगो से कुछ-न-कुछ सिखाता ही रहता है..!
..अध्यात्मिक दृष्टि से देखे तो.."उपनयन-संस्कार" एक ऐसा सोपान है..जहां बालक को गुरु-मंत्र देकर यह दीक्षा दी जाती है कि.. जीवन मे इसको सदैव स्मरण करते रहो..! लेकिन विडम्बना है कि..उसका उपनयन..(तीसरा-नेत्र)..खुल नहीं पाता..और वह माया--मोह मे पड़े रहकर तोता-रटंत कि तरह बताये हुए मंत्र को रटता-जपता रहता है..! नतीजा सिफर ही रहता है..!
रीति-रिवाज से उपनयन-संस्कार तो हो गया..लेकिन ..तीसरी आँख बंद ही रह गयी..!!
..बस यही वह सोपान है..जहां व्यक्ति को एक तत्ववेत्ता-पूर्ण-ज्ञानी गुरु की जरुरत है..जो उसकी तीसरी आँख को खोल कर सच्चे-अर्थो मे उसका उपनयन-संस्कार कर दे..!
गुरु की यही महिमा है..वह "जीव" को "ब्रह्म"से मिलाते है.."अज्ञान" से "ज्ञान".".अन्धकार" से "प्रकाश" की तरफ ले जाते है..!
..इसलिए हम "गुरु" का नाम सुनते ही श्रद्धानावत हो जाते है..!
.."गुरु" तत्व-ज्ञान के संवाहक होते है..इनकी पहचान वेष देखकर नहीं हो सकती..!
..जब तक द्रष्टा गुरु अपनी दिव्य--वाणी से अपना परिचय न करा दे..तब तक..उनको पहचानना मुश्किल है..! इसीलिए कहा है....
..वेष देख मत भूलिए...पूछ लीजिये ज्ञान..!
..तलवार तो म्यान के साथ ही मिलाती है..लेकिन मोल तो तलवार का ही होता है..!
..अष्टावक्र ने राजा जनक को तत्त्व-ज्ञान का उपदेश दिया..और उनकी समाधि लग गयी..!
सारे के सारे मंडलेश्वर--महामंडलेश्वर जहा-के-तहा पड़े हुए यह सब देखते ही रह गए..!
आठ-जगह से टेढ़े-मेढे एक छोटे से बालक ने राजा जनक की शंका का समाधान ही नहीं किया..बल्कि उन्हें आत्मा-तत्व-वोध भी करा दिया.और वह विदेह हो गए..!
..बस यही द्रष्टान्त काफी है.सच्चे-तत्वदर्शी-.गुरु की भक्ति कोई--कोई ही पाता और करता है..!
..जब बादलो मे पानी भर जाता है..तो वह झुण्ड-के-झुन्ध निचे आकर धरती पर जल बरसाते है..ऐसे ही एक नवागत--ज्ञान-दीक्षित सद्गुणों से विभूषित होकर आत्मार्पित हो जाता है..!
रामचरित मानस मे गोस्वामी जी कहते है....
.." बरसहि  जलद भूमि नियराये..जथा नवहि बुध विद्या पाए...!"
....ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः....!

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