MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Monday, March 28, 2011

हे मानव..! तू अपने--आप को जान..!

हे मानव..! तू अपने--आप को जान..!
सचमुच में यह जानने का विषय है..कि "मै कौन हू..?" Who am I..?
नख से शिख तक हमारा जो यह मानव-तन है..वह क्या है..?
इस तन में मन-रूपी जो तंत्र है..वह क्या है..?
इस घट में ऊपर-नीचे आ-जा रही स्वांशे क्या है और वह क्या कह रही है..?
धड़कत हुआ दिल क्या सन्देश दे रहा है..?
शरीर बूढ़ा हो जाता है..किन्तु यह मन बूढ़ा क्यों नहीं होता..?
हमारी दृष्टि सीमित क्यों है..? हम क्यों थक जाते है..? इन्द्रियों के रास्ते क्यों बंद नहीं होते..?
इस संसार में रहते हुए हम जो अनुकूल--प्रतिकूल..सुख-दुःख..संयोग-वियोग..सम्पन्नता-विपन्नता..हर्ष-विषाद..राग-द्वेष..उंच-नीच..राजा-रंक.स्वामी-सेवक..जड़-चेतन..खट्टे-मिट्ठे..बड़े-छोटे..नर--नारी..इत्यादि के द्वंदों का जो अनुभव करते है..वह क्या है..?..
..इत्यादि ऐसे अनेकानेक अनुत्तरित प्रश्न है..जिसका उत्तर ढूढ़ना हरेक मानव का पुनीत कर्तव्य है..तभी यह मानव-जीवन पूर्णता को प्राप्त हो सकता है..!!
..मूलशंकर जब अर्ध-रात्रि को स्वामी विरजानन्दजी की कुतिया पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाते है..तो..अन्दर से महाराज विरजानन्दजी की आवाज आती है.."कौन है..?"
बाहर खड़े मूलशंकर जबाब देते है.."हे स्वामी..! यही जानने के लिए तो मै यहाँ आपकी कुतिया तक चाल कर आया हू..कि मै कौन हू..? यदि मै यह जनता होता कि मै कौन हू..तो मेरी खोज कभी कि पूरी हो चुकी होती..!
अंधे-स्वामी.विर्जानान्दजी से अपने बहु प्रतीक्षित-सद-शिष्य को पहचानते हुए दरवाजा खोल दिया और
मूलशंकर को ज्ञान दीक्षा दी..!
यही मूल्स्कंकर आगे चाकर स्वामी दयानंद सत्स्वती के नाम से विश्व-विख्यात हुए और आर्य-समाज कि स्थापना कि..तथा.."सत्यार्थ-प्रकाश" नमक ग्रन्थ की रचना किया..और अमर हो गए..!
इसीप्रकार नरेन्द्र को स्वामी रामकृष्ण ने स्वामी विव्कानंद के रूप में रूपांतरित कर दिया..जिसने विश्व में भारतीय अध्यात्म की पताका फहराई..!
..तो आवश्यकता है..अपने-आपको जानने के लिए..एक सम्पूर्ण-सच्चे-तत्वदर्शी-गुरु की खोज करने की.जो शिष्य का सम्पूर्ण रूपांतरण करने की छमता रखते हो..!.जब तक यह खोज पूरी नहि हो जाती ..तब तक चाहे..अनेको गुरु भी क्यों न बनाना पड़े..बनाते चले..जैसे कि भगवान दत्तात्रेय ने २४ गुरु किये..और जैसे ही २५वे गुरु से उनको आत्म-तत्व का वोध मिला..उनकी गुरु की खोज को पूर्ण-विराम लग गया..!
यही एक ऐसा साधन है..जो एक मानव को उसकी यथार्थ-कायिक..सूक्ष्म और कारण तीनो स्थितियों काभिज्ञान करते हुए उसका पूर्ण रूपांतरण कर सकता है..!
..ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः...!

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