MANAV DHARM

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Wednesday, March 16, 2011

"आत्म--ज्ञान का तत्व.."

"आत्म--ज्ञान का तत्व.."
आत्मा-ज्ञान का तत्व बड़ा ही गूढ़ तथा गहन है..!
ज्ञान-तत्व के गूढ़ रहस्य को समझाने वाला कुशल आचार्य और इस ज्ञान का सच्चा जिज्ञासु भी बहुत कम होते है..!
यह तत्व-ज्ञान सहज में समझ में आने वाली बस्तु नहीं है..!
यह तत्व-ज्ञान सूक्ष्म तथा तर्क से परे है..!
ब्रह्म का दर्शन कठिनता से होता है..!
वह गूढ़ में भी गूढ़ है..तथा ह्रदय रूपी गुफा में छिपा है..!
यह सबसे पुरातन है..! अध्यात्म-योग द्वारा उसको प्राप्त किया जाता है..!
उसका दर्शन काके विवेकीजन हर्ष-शोक दोनों से मुक्त हो जाते है..!
यह "अक्षर" ही "ब्रह्म" है..यह अक्षर ही परम ब्रह्म परमात्मा है..इस अक्षर को जानने वाला उसे ही पा लेता है ..जिसे वह चाहता है..!
यह "आत्मा" न जन्मता है..और न मरता है..यह शरीर के जन्म लेने पार न उत्पन्न होता है ..और न मृत्यु होने पार मरता है..यह नित्य..शाश्वत और पुरातन है..!
जो इसे मरने वाला या मारने वाला समझते है..वे दोनों ही इसे नहीं जानते..!
यह न मरने वाला है..और न मारने वाला है..!
यह परमात्मा अणू से अणू तथा महान से महान है.. वह सभी भूत-प्राणियों के ह्रदय रूपी गुफा में छिपा है..जो उसका दर्शन करता है..उसके समस्त शोक मिट जाते है..!
उस परमात्मा की महिमा को परमात्मा की कृपा से ही जान सकते है..!
यह परमात्मा बहुत कहने-सुनाने अथवा बुद्धि से प्राप्त नहीं होता..!
वह जिस पर कृपा करता है..वह उसे प्राप्त करता है..!
यह शरीर रथ है और आत्मा रथी है..बुद्धि सारथी तथा मन लगाम समझो..!
इन्द्रियों को शरीर रूपी रथ के घोड़े समझो..!
इन्द्रियों के विषय ही वह मार्ग है..जिस पर इन्द्रिय रूपी घोड़े दौड़ते है..!
जो आत्म ज्ञान रहित है..उसका मन वहिर्मुखी रहता है..उसकी इन्द्रिय भी वश में नहीं रहती..जैसे दुष्ट घोड़े अनादी सारथी के वश में नहीं रहते..!
जो तत्व-ज्ञानी है..उनका मन आत्मा के साथ जुदा रहता है..उसकी इन्द्रिय वश में रहती है..जैसे कुशल सारथी के वश में घोड़े रहते है..!
आत्म ज्ञान रहित पुरुष बार-बार जमन-मरण के चक्कर में भटकते है..किन्तु आत्म-ज्ञानी मन रूपी लगाम की वश में रहता है..और संसार रूपी मार्ग को पार कर विष्णु के परम धाम को प्राप्त कर लेता है..!
ॐ श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः..!
 

 

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