हम दिन-प्रतिदिन यह देखते है..कि..परमात्मा कि पूजा--अर्चना के प्रति कितनी भ्रांतियां समाज में है..! कितनी हकती-भव और श्रद्धा के साथ लोग पूजा--अर्चना--दान--दक्षिणा करते औत देते है..फिर भी मुरादे पूरी नहीं होती..! कष्ट बढ़ाते ही जाते है..!
इसका क्या कारण है..?
इसका एकमात्र कारण है..मूरत पूजने से भगवान नहीं मिलते..और जब तक भगवान नहीं मिलेगे..कष्ट दूर नहीं होगे..! भगवान का मिलाना ही सारे कष्टों का दूर हो जाना है..!
कबीर साहेब कहते है..
पाहन पूजे हरि मिले तो मै पुजू पहार ..!
ताते ये चाकी भली पीस खाय संसार..!!
..एक मंदिर में चार चीजे अनिवार्य रूप से विद्यमान रहती है..!
,,मूर्ति..कमंडल का जल..आरती का पात्र..और घंटी..! मंदिर का गुम्बद भी चारो तरफ से तिकोना ही होता है..!
यहाँ पार यह चारो चीजे रखी..या स्थापित रहती है..इसलिए यह पूजा स्थल है..!
यह ज्ञान कि बात है कि..यहि चारो चीजे..चतुर्भुज भगवान योगेश्वर कि चारो भुजाओं में विद्यमान है.....शंख..चक्र..पद्म..गदा..जिसकी तात्विक व्याख्या क्रमशः..ऋग्वेद..यजुर्वेद..अथर्ववेद ..सामवेद..में कि गयी है..!
मंदिर में रखी मूर्ति..चक्र का प्रतीक है..!
मंदिर में रखी घंटी..शंख का प्रतीक है..!
मंदिर में रखा आरती का पात्र..गदा का प्रतीक है..!
मंदिर में रखा कमंडल का जल पद्म का प्रतीक है..!
..इसप्रकार जब हम मंदिर में पूजा करते है..तो भगवान योगेश्वर के चतुर्भुजाओ में स्थित चारो चीजो की प्रतीक-रूप में मंदिर में स्थापित उपरोक्त बस्तुओ की पूजा करते है..!
..यह तो स्पष्ट ही है कि..पत्थर की मूर्ति बोल नहीं सकती..भोग-प्रसाद ग्रहण नहीं कर सकती..फिर भी लोगो की श्रद्धा--विशवास ऐसा है कि सब काम छोड़कर वही पूजा करने दौड़ते ही रहते है..!
और लुटते भी जाते है..लेकिन..मुरादे पूरी नहीं होती..उलटे पूजारियो के गठरी मोती होती जाती है..!
..ज्ञान कि बात है..मानव का यह शरीर भी एक जीता--जगाता मंदिर है..जो खडा--भगवान कि असीम दया--कृपा से मिला है..इसमे उपरोक्त चारो चीजे..चारो तत्त्व..बीज-रूप में विद्यमान है..!
इसका प्रकातिकारण सद्गुरु कि कृपा से होता है..!
संत--समागम करने से गुरु-तत्त्व का ज्ञान होता है..!
जब सच्चे-तत्वदर्शी गुरु मिल जाते है..तो हमें यह ज्ञान होता है कि..हम भी मानव छोले में योगेश्वर ही है..! जब भगवान ने हमको अपने सामान ही बनाया और खडा किया है..तो फिर पूजा भी हमको इसी शरीर से इसी जीवन में उसकी हो करनी है..न कि..पत्थर की मूर्ति की.?
जो गदा है..वह..शब्द-ब्रह्म है..
जो चक्र है..वह ज्योति--ब्रह्म है..
जो शंख है..बह नाद--ब्रह्म है..!
जो पद्म है..वह अमृत-रस.सहस्रार है..!
..तो..इसी मानव जीवन में हमें इन्ही चारो तत्वों को सत्संग--संत--समागम..सेवा--भक्ति और समर्पण-तथा -श्रद्धा-विशवास से प्राप्त करना है..यही प्रभु की सच्ची पूजा--अर्चना है जो तुरंत फल देने वाली है....
तभी तो कहा है..
"घट में है सूझे नाही..लानत ऐसी जिन्द..तुलसी या संसार को भयो मोतियाबिंद..!
तो सारा संसार मितोयाबिंद में पडा है..!
" मंदिर--मंदिर मूरत देखी..प्रभु ! तेरी सूरत कही ना देखी..!
अगर देखी..तो घट--भीतर देखी..और फिर कही ना देखी..!!
..तो यदि भगवान की सच्ची पूजा करनी है..तो उसको तत्व से जान कर अपने भीतर ही करनी है...." भवानी--शंकरौ बन्दे श्रद्धाविश्वास रुपिणौ..याभ्यां बिना ना पश्यन्ति सिद्धा स्वन्तास्थामीश्वरम..!!..!
ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः ....!!!!
इसका क्या कारण है..?
इसका एकमात्र कारण है..मूरत पूजने से भगवान नहीं मिलते..और जब तक भगवान नहीं मिलेगे..कष्ट दूर नहीं होगे..! भगवान का मिलाना ही सारे कष्टों का दूर हो जाना है..!
कबीर साहेब कहते है..
पाहन पूजे हरि मिले तो मै पुजू पहार ..!
ताते ये चाकी भली पीस खाय संसार..!!
..एक मंदिर में चार चीजे अनिवार्य रूप से विद्यमान रहती है..!
,,मूर्ति..कमंडल का जल..आरती का पात्र..और घंटी..! मंदिर का गुम्बद भी चारो तरफ से तिकोना ही होता है..!
यहाँ पार यह चारो चीजे रखी..या स्थापित रहती है..इसलिए यह पूजा स्थल है..!
यह ज्ञान कि बात है कि..यहि चारो चीजे..चतुर्भुज भगवान योगेश्वर कि चारो भुजाओं में विद्यमान है.....शंख..चक्र..पद्म..गदा..जिसकी तात्विक व्याख्या क्रमशः..ऋग्वेद..यजुर्वेद..अथर्ववेद ..सामवेद..में कि गयी है..!
मंदिर में रखी मूर्ति..चक्र का प्रतीक है..!
मंदिर में रखी घंटी..शंख का प्रतीक है..!
मंदिर में रखा आरती का पात्र..गदा का प्रतीक है..!
मंदिर में रखा कमंडल का जल पद्म का प्रतीक है..!
..इसप्रकार जब हम मंदिर में पूजा करते है..तो भगवान योगेश्वर के चतुर्भुजाओ में स्थित चारो चीजो की प्रतीक-रूप में मंदिर में स्थापित उपरोक्त बस्तुओ की पूजा करते है..!
..यह तो स्पष्ट ही है कि..पत्थर की मूर्ति बोल नहीं सकती..भोग-प्रसाद ग्रहण नहीं कर सकती..फिर भी लोगो की श्रद्धा--विशवास ऐसा है कि सब काम छोड़कर वही पूजा करने दौड़ते ही रहते है..!
और लुटते भी जाते है..लेकिन..मुरादे पूरी नहीं होती..उलटे पूजारियो के गठरी मोती होती जाती है..!
..ज्ञान कि बात है..मानव का यह शरीर भी एक जीता--जगाता मंदिर है..जो खडा--भगवान कि असीम दया--कृपा से मिला है..इसमे उपरोक्त चारो चीजे..चारो तत्त्व..बीज-रूप में विद्यमान है..!
इसका प्रकातिकारण सद्गुरु कि कृपा से होता है..!
संत--समागम करने से गुरु-तत्त्व का ज्ञान होता है..!
जब सच्चे-तत्वदर्शी गुरु मिल जाते है..तो हमें यह ज्ञान होता है कि..हम भी मानव छोले में योगेश्वर ही है..! जब भगवान ने हमको अपने सामान ही बनाया और खडा किया है..तो फिर पूजा भी हमको इसी शरीर से इसी जीवन में उसकी हो करनी है..न कि..पत्थर की मूर्ति की.?
जो गदा है..वह..शब्द-ब्रह्म है..
जो चक्र है..वह ज्योति--ब्रह्म है..
जो शंख है..बह नाद--ब्रह्म है..!
जो पद्म है..वह अमृत-रस.सहस्रार है..!
..तो..इसी मानव जीवन में हमें इन्ही चारो तत्वों को सत्संग--संत--समागम..सेवा--भक्ति और समर्पण-तथा -श्रद्धा-विशवास से प्राप्त करना है..यही प्रभु की सच्ची पूजा--अर्चना है जो तुरंत फल देने वाली है....
तभी तो कहा है..
"घट में है सूझे नाही..लानत ऐसी जिन्द..तुलसी या संसार को भयो मोतियाबिंद..!
तो सारा संसार मितोयाबिंद में पडा है..!
" मंदिर--मंदिर मूरत देखी..प्रभु ! तेरी सूरत कही ना देखी..!
अगर देखी..तो घट--भीतर देखी..और फिर कही ना देखी..!!
..तो यदि भगवान की सच्ची पूजा करनी है..तो उसको तत्व से जान कर अपने भीतर ही करनी है...." भवानी--शंकरौ बन्दे श्रद्धाविश्वास रुपिणौ..याभ्यां बिना ना पश्यन्ति सिद्धा स्वन्तास्थामीश्वरम..!!..!
ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः ....!!!!
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