लोग अक्सर भगवान के दर्शन करने अनेकों तीरथ जाते हैं बड़े-बड़े कष्ट झेलकर मंदिरों में जाते हैं कई वर्त-उपवास लेते हैं
लेकिन उन्हे परम शांति नही मिल पाती है आत्म-संतुष्टि नही मिल पाती है
विवेकानंद कहते थे में जब छोटे-छोटे बच्चों को मंदिरों में देखता हूँ तो मुझे बहुत खुशी होती है लेकिन जब में बूढ़ों को मंदिर जाते देखता हूँ तो मुझे बड़ा दुख होता है कि वे इतनी बड़ी उम्र तक भी प्रभु को नही जान पाए प्रभु का जो सच्चा नाम है वह नही जान पाए
भगवान के सभी नाम गुणवाचक है लेकिन जो प्रभु का सच्चा नाम है वो गुणवाचक नही जीभ के अंतर्गत नही आता है और वो नाम केवल समय के सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं
उसी में परम शांति है जिससे मान में शांति होगी तभी तो बाहर भी शांति होगी और तभी पूरी दुनिया मैं शांति होगी
और सच्चे ज्ञान को जाने बिना वे इधर-उधर भटकते हैं देखा-देखी भक्ति करते हैं परंतु इससे कल्याण नही होगा
वह नरक से नही बच सकता है
उस परम ज्ञान को केवल सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं यही ज्ञान महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को दिया था
उस पावन नाम को शिव जी भ जप ते हैं हनुमान जी महाराज भी उसी नाम को जप ते थे और इसकी ताक़त से
उन्होने असूरों का संहार किया था
और यही अध्यात्म का सार है
अध्यात्म का अर्थ है मनुष्य की आत्मा को परमात्मा से जोड़ना
इसलिए अध्यात्म को जाने सच्चे सतगुरु की तलाश करें
अधिक जानकारी के लिए www.manavdharam.org पर जायें
धन्यवाद
लेकिन उन्हे परम शांति नही मिल पाती है आत्म-संतुष्टि नही मिल पाती है
विवेकानंद कहते थे में जब छोटे-छोटे बच्चों को मंदिरों में देखता हूँ तो मुझे बहुत खुशी होती है लेकिन जब में बूढ़ों को मंदिर जाते देखता हूँ तो मुझे बड़ा दुख होता है कि वे इतनी बड़ी उम्र तक भी प्रभु को नही जान पाए प्रभु का जो सच्चा नाम है वह नही जान पाए
भगवान के सभी नाम गुणवाचक है लेकिन जो प्रभु का सच्चा नाम है वो गुणवाचक नही जीभ के अंतर्गत नही आता है और वो नाम केवल समय के सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं
उसी में परम शांति है जिससे मान में शांति होगी तभी तो बाहर भी शांति होगी और तभी पूरी दुनिया मैं शांति होगी
और सच्चे ज्ञान को जाने बिना वे इधर-उधर भटकते हैं देखा-देखी भक्ति करते हैं परंतु इससे कल्याण नही होगा
वह नरक से नही बच सकता है
उस परम ज्ञान को केवल सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं यही ज्ञान महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को दिया था
उस पावन नाम को शिव जी भ जप ते हैं हनुमान जी महाराज भी उसी नाम को जप ते थे और इसकी ताक़त से
उन्होने असूरों का संहार किया था
और यही अध्यात्म का सार है
अध्यात्म का अर्थ है मनुष्य की आत्मा को परमात्मा से जोड़ना
इसलिए अध्यात्म को जाने सच्चे सतगुरु की तलाश करें
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इश्वर प्रकाश-स्वरूप है..स्वयं प्रकाशित और सबका प्रकाशक है..! ऐसे ही एक साधक जब अपनी साधनकी प्रखरता से परम-पिता-परमेश्वर के स्वरूप में लीन हो जाता है..तो उसके प्रभामंडल से ज्ञानालोक दैदीप्यमान होने लगता है..दिव्या-गुण प्रस्फुटित होने लगते है..और उसका जीवन बिलकुल नैसर्गिक हो जाता है..! सत्य-नारायण-परमात्मा को प्राप्त होने का यही अभीष्ट है..!
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