MANAV DHARM

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Tuesday, March 29, 2011

...प्रभुजी के पावन-नाम की महिमा अपरम्पार है..!!

.प्रभुजी के पावन-नाम की महिमा अपरम्पार है..!!
कलियुग केवल नाम अधारा..सुमिरि-सुमिरि नर उतरहि पारा..!



नहि कलिकर्म न भगति विवेकू..राम नाम अवलंबन एकु..!!
.......उल्टा नाम जपा जग जाना..वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना..!
..नाम प्रभाऊ जान शिव नीको..कालकूट विष पिय अमी को..!!
...मंगल भवन अमंगल हारी..उमा सहित जेहि जपत पुरारी..!!
सहस्र नाम सुनि शिव वानी..जप जेई शिव संग भवानी...!!
..बंदौ नाम राम रघुवर को हेतु कृसानु भानु दिनकर को..!!
..सुमिरि पवनसुत पावन नामु..अपने वश करि राखे रामू..!!
..नाम प्रभाऊ जान गंराऊ..प्रथम पुजियत नाम प्रभाऊ..!!
...ब्रह्न राम ते नाम बड वरदायक वरदानी....रामचरित सत कोटि मह..जपे महेश हिये जानी..!!
...राम एक तापस तीय तारी..नाम कोटि सत कुमति सुधारी..!
कहो कहा लगि नाम बड़ाई..राम न सकहि नाम गुन गई..!!
..वर्षा-रितु रघुपति भगति..तुलसी सालि सुदास..राम-नाम दुई वरन-जुग सावन-भादों मॉस..!!
..तो सज्जनों..!! कलियुग में केवल-मात्र प्रभु के नाम-सुमिरन का सहारा है..!
यह नाम विष्णु-भगवान के सहस्र-नाम का फल देने वलाहाई..और यहि नाम..अग्नि..सूरज और चन्द्रमा का कारक है..! यहि नाम सदाशिव अपनी अर्धांगिनी पार्वतीजी के साथ निरंतर जपते रहते है..जो मंगल-भवन है और अमंगलो का नाश करने वाला है..!
भगवान राम ने केवल ऋषि-पत्नी अहिल्या का ही उद्वार किया था..जबकि प्रभु के नाम ने सहस्रों लोगो की कुमति सुधार दी..! इस नाम की कहा तक बडाई की जाय..भगवान श्रीराम भी इसका गुणगान करने में असमर्थ रहे..!
यह नाम ब्रह्म-राम से भी बड़ा..और वर देनेवालो का वरदायक है..!
इस नाम के दोनों वर्ण सावन-भादों मॉस की तरह है..जैसे सावन के बाद भादों मॉस आता है..ऐसे ही वरमाला में यह अक्षर एक के बाद एक आते है..!यहि सब्द-ब्रह्म है..जिसका उलटा-जप करके रत्नाकर-डाकू..आगे चलर महर्षि वाल्मिक के रूप में रूपांतरित हो गए..!!
..गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपनी विभूतियों में..कहते है..अक्षरों में परम-अक्षर..मै ही हू..!!
यह परम-अक्षर परा-वानी है..इसका अजपा-जप किया जाता है..यही गायत्री-मां का प्राण-बिंदु है..!!
..अजपा-नाम गायत्री योगिनाम मोक्ष दायिनी..यस्य संकल्प मात्रेण सर्वपाप्ये प्रमोच्याते..!!
..इस नाम पैर प्रश्न-चिह्न लगनेवाले..महान अज्ञानी और इश्वर-द्रोही है..!!
समय के सच्चे-संपूर्ण-तत्वदर्शी गुरु की कृपा से यह नाम साधक के ह्रदय में स्वयं-प्रकट होता है..और इसके प्रकट होते ही सम्पूर्ण..दैहिक..दैविक .और भौतिक तापो का समूल नाश हो जाता है..और साधक एक मुक्तात्मा की भाति..जैसे जल में तेल की बूंद ऊपर ही तैरती रहती है.और जल में मिल नहि पाती .वसे ही साधक सिद्ध-योगी की तरह संसार-सागर में उतराने लगता है..!
..........इस पावन-नाम को जानना ही प्रभु को पा जाना है..!!
ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः........!!

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