"सुख" क्या है..??
अन्तः कारण में व्याप्त रहने वाली सहज-शान्ति और सहज-सन्तुष्टि..ही सुख है..!
चित्त की एकाग्रता और कर्म की निर्लिप्तता ही सुख है..!
शब्द और श्रुति की सहज-एकता ही सुख है..!
आत्मा से परमात्मा का सहज-मिलन ही सुख है..!
"सुख" सांसारिकता में नहीं..अपितु समाधि में है..!
सांसारिकता और समाधि क्या है..?
जब मानव संसार में रहता है..तब वह "जीवात्मा" कहलाता है..!
जीवात्मा संसार के क्षणिक सुखो में वशीभूत हो जाती है..संसार के द्वन्द में आ फसती है..सुख-दुःख..हर्ष-विषाद..राग-द्वेष..संयोग-वियोग..हानि-लाभ..यश-अपयश..सम्पन्नता-विपन्नता..जीवन-मरण इत्यादि के द्वन्द मानव को त्रसित करते रहते है..!
जीवात्मा अपनी सीमित गति-सामर्ध्य में बंधी रहती है..और यह बंधन उसकी नियति बन जाते है..!
समाधि में पहुचकर मानव "मुक्तात्मा" हो जाता है..!
उसकी गति-सामर्ध्य असीम ..अनंत..अचिन्त्य..अदभुत..अलौकिक हो जाती है..!
वह मानव से महामानव हो जाता है..!
"समाधि" क्या है..??
इस मानव-शरीर में स्वांश के माध्यम से प्राण का समान-रूप से पिंड में आना-जाना ही समाधि है..!
यहि अष्टांग=योग का अंतिम सोपान है..!
इसे समत्व-योग भी कहते है..!
इस मानव-पिंड में प्राण पांच-रूपों में विचरण करता है..पान-अपान-उड़ान-व्यान्न -समान..!!
समत्व-योग में स्थित योगी इन सभी पांचो स्थितिओ से गुजरता है..!
समत्व-योग से ही कुण्डलिनी-महाशक्ति का जागरण और संचरण होता है..!
जब यह शक्ति जागृत हो जाती है..तब व्यक्ति..स्वयं का द्रष्टा..और नियंत्रक हो जाता है..!
कलि की कालिमा और महाकाल भी बहुत दूर छिटक जाते है..!
धन्य है वह सिद्ध-योगी-भक्त..! धन्य है वह सदगुरुदेव भगवान..! जिसकी कृपा और आशीर्वाद से यह योग सिद्ध और फलीभूत होता है..!
इस योग की सिद्धि ही भक्त और भगवान का सहज-मेल है..और यही मानव-जीवन का सहज-सुख..सहज-सन्तुष्टि..सहज-वैराग्य..और सहज-योग..है..!
...इसलिए इस मानव-जीवन में सच्चे-सुख की कामना करने वाले हर जीव को एक पूर्ण..तत्वदर्शी-गुरु की खोज करके इस योग-क्रिया-विधि का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए..!
..यही मानव-जीवन की आवश्यकता और सार्थकता है..!
........ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः.......!!!!
अन्तः कारण में व्याप्त रहने वाली सहज-शान्ति और सहज-सन्तुष्टि..ही सुख है..!
चित्त की एकाग्रता और कर्म की निर्लिप्तता ही सुख है..!
शब्द और श्रुति की सहज-एकता ही सुख है..!
आत्मा से परमात्मा का सहज-मिलन ही सुख है..!
"सुख" सांसारिकता में नहीं..अपितु समाधि में है..!
सांसारिकता और समाधि क्या है..?
जब मानव संसार में रहता है..तब वह "जीवात्मा" कहलाता है..!
जीवात्मा संसार के क्षणिक सुखो में वशीभूत हो जाती है..संसार के द्वन्द में आ फसती है..सुख-दुःख..हर्ष-विषाद..राग-द्वेष..संयोग-वियोग..हानि-लाभ..यश-अपयश..सम्पन्नता-विपन्नता..जीवन-मरण इत्यादि के द्वन्द मानव को त्रसित करते रहते है..!
जीवात्मा अपनी सीमित गति-सामर्ध्य में बंधी रहती है..और यह बंधन उसकी नियति बन जाते है..!
समाधि में पहुचकर मानव "मुक्तात्मा" हो जाता है..!
उसकी गति-सामर्ध्य असीम ..अनंत..अचिन्त्य..अदभुत..अलौकिक हो जाती है..!
वह मानव से महामानव हो जाता है..!
"समाधि" क्या है..??
इस मानव-शरीर में स्वांश के माध्यम से प्राण का समान-रूप से पिंड में आना-जाना ही समाधि है..!
यहि अष्टांग=योग का अंतिम सोपान है..!
इसे समत्व-योग भी कहते है..!
इस मानव-पिंड में प्राण पांच-रूपों में विचरण करता है..पान-अपान-उड़ान-व्यान्न -समान..!!
समत्व-योग में स्थित योगी इन सभी पांचो स्थितिओ से गुजरता है..!
समत्व-योग से ही कुण्डलिनी-महाशक्ति का जागरण और संचरण होता है..!
जब यह शक्ति जागृत हो जाती है..तब व्यक्ति..स्वयं का द्रष्टा..और नियंत्रक हो जाता है..!
कलि की कालिमा और महाकाल भी बहुत दूर छिटक जाते है..!
धन्य है वह सिद्ध-योगी-भक्त..! धन्य है वह सदगुरुदेव भगवान..! जिसकी कृपा और आशीर्वाद से यह योग सिद्ध और फलीभूत होता है..!
इस योग की सिद्धि ही भक्त और भगवान का सहज-मेल है..और यही मानव-जीवन का सहज-सुख..सहज-सन्तुष्टि..सहज-वैराग्य..और सहज-योग..है..!
...इसलिए इस मानव-जीवन में सच्चे-सुख की कामना करने वाले हर जीव को एक पूर्ण..तत्वदर्शी-गुरु की खोज करके इस योग-क्रिया-विधि का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए..!
..यही मानव-जीवन की आवश्यकता और सार्थकता है..!
........ॐ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः.......!!!!
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