MANAV DHARM

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Thursday, February 3, 2011

अपने--आप की पहचान..

अपने--आप की पहचान..
----------------------- जी हाँ...बहुत सरल है..! थोड़ा प्रयास करने की जरुरत है बस !.आज के युग में हर कोई भाग राहा है..कोई रोजी के पीछे..तो कोई दौलत के पीछे..तो कोई मौज--मस्ती के पीछे..तो कोई सुख--शान्ति के प्पिछे...लेकिन अपने--आपके पीछे कोई माई का लाल ही भागता है..!!
जैसे अपने चेहरे (मूरत) को देखने के लिए हमें दर्पण की जरुरत होती है...वैसे ही
अपनी रूहानी सूरत को देखने..जानने के लिए हमें गुरु--रूपी दर्पण की जरुरत है...जो इस घट (मानव--देह ) के बंद ताले को खोलकर प्रत्यक्ष उजाला कर देते है..!!
यह ताला और कुछ नहीं....बल्कि हमारी रूहानी आँख (उपनयन) या तीसरी आँख है..
जो मायारूपी काई से ढंकी हुई है..! जब जीव पर प्रभु की कृपा होती है..तब गुरु जी से मिलाप होता है..! और हमारे कल्याण के दरवाजे खुल जाते है..!!
....इस घट में जो ज्योति है..उस ज्योति में एक मोती है..!
पर किसी को पता ही नहीं..यह दुनिया तो सोती है...यह दुनिया तो सोती है..!
उसका है एक लाला..जो घट का खोले ताला..खोल के ताले को कर देता है उजियाला..!!....तो इस उजाले को पाने के लिए हमें गुरु--मति का होना पडेगा और मन--मति का पूरी तरह से परित्याग करना पडेगा..!!
..जिसको उजाले (प्रकाश) से प्रेम (चाहत) है..उसे अंतर्मुखी होना पडेगा और गुरु महाराज जी की आज्ञा में रहकर अपना मानव--जीवन सार्थक करने हेतु साधनारत होना होगा..तभी कल्याण संभव है..!!

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