MANAV DHARM

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Friday, February 11, 2011

रामायण--सार..!

रामचरितमानस में गुरु वशिष्ठ जी भारत से कहते है...
"सुनहु भारत भावी प्रवल बिलखी कहेहु मुनि नाथ..!
हानि--लाभ जीवन--मरनु जसु--अपजसु बिधि हाथ..!!"
अर्थात..राम--वन--गमन के पश्चात जब भारत ननिहाल से अयोध्या लौटते है..तब बिलखते हुए वशिष्ठ मुनि जी कहते है.." हे भारत..! सुनो..हानि लाभ जीवन मरण यश और अपयश..यह छ चीजे विधाता के हाथ में है..! इस पर मनुष्य का कोई वश नहीं है..!
...सम्पूर्ण रामायण इसी छ चीजो के इर्द--गिर्द चलते हुए मुखरित होती है..!!
बिचारिये.."हानि" किसकी हुयी..?
हानि अयोध्या वासियों कि हुयी जो उनको प्रभु श्रीराम का बियोग मिला..!
"लाभ" किसका हुआ..?
लाभ वन--वासियों और केवट का हुआ..जिन्होंने प्रभु श्रीराम के दर्शन पाए और सेवा की..!
"जीवन" किसको मिला..?
जीवन ऋषि--मुनियों को मिला..जिन्हें राक्षसों से भगवान श्रीराम ने बचाया और उन्हें अभय-दान दिया..!
"मरण" किसका हुआ..?
मरण रजा दशाताय्ज का हुआ..जिन्होंने प्रभु श्री राम जैसे पुत्र के विछोह में अपने प्राण त्याग दिए..!
"यश" किसका हुआ..?
यश भालु--बंदरो का हुआ जिन्होंने प्रभु श्रीराम के साथ राक्षसों से युद्ध किया और विजय पाई..!
"अपयश" किसका हुआ..?
अपयश कैकेयी का हुआ..जिन्होंने जिन्होंने प्रभु श्री राम कोरज गद्दी पर बैठने नहीं दिया और रजा दशरथ की मृत्यु का बनी..!
...स्यष्ट है..यह सभी चीजे बिधाता की इच्छा पर थी..और सम्पूर्ण रामायण का यही सार--तत्त्व है..!
..मानव-जीवन में भी यह सभी चीजे घटित होती है..किन्तु भ्रम-वश मनुष्य इसकी वास्तविकता और इसके पीछे दैवी-शक्ति का संज्ञान नहीं ले पाटा..!
..आवश्यकता है यथार्थ को जानने-समझाने की..!
..प्रभु की इच्छा से ही सभी कर्म उत्पन्न होते है..और इसकी पूर्ति भी प्रभु की इच्छा से ही होती है..१
मनुष्य तो केवल निमित्त-मात्र है..!

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