MANAV DHARM

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Saturday, February 12, 2011

"मंजिल" कि प्राप्ति...!

"मंजिल" कि प्राप्ति...!
........"हर सुबहा निअकलाते है..हर शाम को ढलते है..
सूरज की तरहा हमारे अंदाज बदलते है...
शयेद किसी राही को साए कि जरुरत हो.....?
इस वास्ते यारो..! हम धुप में चलते है...हम धुप में चलते है..!
नज़ारे न उठाना तुम अंदेशा-ए-तूफ़ान है..
मौजो कि तरहा..दिल के जज्वात मचलते है....जज्वात मचलते है..!!
चहरे पे तगय्यर का एहसाह नहीं हमको...
हम जव भी बदलते है..आइना--ए--बदलते है..आइना--ए--बदलते है...!!
मंजिल ने "हयात" उसकी ख़ुद बढ़ के कदम चूमे..
" मंजिल" का यकीन लेकर जो घर से निकलते है..जो घर से निकलते है...!
हर सुबहा निकलते है हर शाम को ढलते है..
सूरज की तरहा हमारे अंदाज बदलते है..अंदाल बदलते है...!!

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