MANAV DHARM

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Sunday, February 20, 2011

सुधा--सूरा सम साधु असाधू..जनक एक जग जलधि अगाधू..!

"साधू"  शब्द  सुनते  ही   लोगो  के  मन  में  तुरन्त  हलचल  पैदा  हो  जाती है..!
कोई  आज  के  जमाने  में  किसी  भगवा  पहने  इंसान  या  प्रवचन  करते  स्वाधिश्ताता
पुरुष  को  जरा  सा  भी  सम्मान  की  दृष्टि  से  नहीं  देखना  चाहता..!
सांसारिक   लोगो  की  नजर  में यह  सब  पैसा  कमाने  यों  ठगी  कने  के  तरीके है..!
प्रश्न  यह  नहीं  की..ऐसे  लोग  साधू  है  या  असाधू  है..?
प्रश्न  यह  है..की  धर्मं  शाश्त्रो  के  अनुसार  साधू..या  संत--पुरुष और  असाधू  या  दुष्ट-जन  किसको कहते  है..?
रामचरितमानस  में  संत  तुलसीदासजी  ने  दोनों  की  ही  बंदना  की  है  और  उनकी  स्वाभाविक  प्रकृति   को भली-भाति समझाया है.! गोस्वामीजी कहते है..
सुधा--सूरा सम साधु असाधू..जनक एक जग जलधि अगाधू..!

भाल-अनभल  निज-निज  करतूती..लहत सुजन अपलोक विभूति..!
सुधा  सुधाकर  सुरसरि   साधु...गरल अनल  कलिमल स्री   व्याधू..!
गुन अवगुण जानत  सब  कोई..जो  जेहि  भाव  नीक  सोई  तेही..!
     भली  भलाइहि   पे  लहहि..लहहि  निचाइहि   नीचु..!
     सुधा  सराइही    अमरता..गरल  सराइही    मीचु..!!
खल अघ  अगुन  साधु  गुन  गाहा..उभय  अपार  उदधि  अवगाहा..!
जेहि  ते  कछु  गुन  दोष  बखाने..संग्रह  त्याग  न  बिनु  पहिचाने..!
भालू  पोच  सब  बिधि  उपजाए ..गति गुन दोष  वेद  विलागाये..!
कहहि  वेद  इतिहास  पुराना..बिधि  प्रपंचु  गुन   अवगुन नाना..!
दुःख-सुख पाप-पुन्य दिन-राती..साधु-असाधू  जाति-कुजाती..!
दानव-देव  ऊच  अरु  नीचु..अमिय  सुजीवनु  माहुर  मीचु..!
माया  ब्रह्म  जीव  जगदीशा..लच्छि  अलच्छि  रंक  अवनीषा..!
कासी  मग  सुरसरि  कमनासा..मरू  मारव  महिदेव  गवासा..!
सरग नरक  अनुराग  विरागा..निगमागम  गुन  दोष  विभागा..!
   जड़  चेतन गुन दोषमय..विश्व कीन्ह  करतार..!
   संत  हंस गुन  गहहि  पय..परिहरि  वारि  विकारि..!!
अस  विवेक  जब  देई  विधाता..तब  तजि दोष गुनहि  मनु  राता..!
काल  सुभाऊ  करम  बरियाई..भलेहि  प्रकृति  बस  चुकही   भलाई..!
लखि  सुवेश  जय  बंचक  जेऊ..वेष   प्रताप  पुजीयाही  तेऊ..!
उघरही  संत  न  होई  निवाहू..कालनेमि  जिमि  रावण  राहू..!
किएहु  सूवेशु  साधु  सनमानू..जिमि  जग  जामवंत  हनुमानू..!
हानि  कुसंह  सुसंगति  लाहू..लोकहु  वेद  विदित  सब  काहू..!
गगन  चढ़ाई  रज  पवन  प्रसंगा ..कीचहि मिलहि नीच  जल  संग..!
साधु अस्स्धू  सदन  सुख  गारी..सुमिरही राम  देहि  गाणी  गारी..!
धूम  कुसंगति  कारिख  होई..लिखीय  पुराण  मंजु  मसि   सोई..!
सोई  जल  अनल  अनिल  संपाता..होई  जल्द  जग  जीवन  दाता..!!

इसप्रकार  संत-शिरोमणि  तुलसीदासजी  ने  भालीभाती  साधु  और  असाधू के  बारे  में  भालीभाती  उपमा सहित  समझा  दिया  है..!
जिसके  ज्ञान-चक्षु खुल गए  है..वह  इसको  बहुत  आसानी  से  समझ  जायेगे..और  जो अभी तक
अज्ञानान्धकार में दुबे  हुए  है..वह इस मीमांसा  को  कदापि  नहीं समझ  सकते..!





  




 

 

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