MANAV DHARM

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Sunday, February 27, 2011

"सत्य" एक है.."मुकाम" एक है..रास्ते और रहवर भले ही भिन्न--भिन्न हो..!

"सत्य" एक है.."मुकाम" एक है..रास्ते और रहवर भले ही भिन्न--भिन्न हो..!
जैसे गंगाजी गंगोत्री ग्लेसिएर से निकालने के पश्चात चार धाराओं में..क्रमशः..मंदाकिनी..अलकनंदा..रामगंगा और भागीरथी ..में बाँट जाती है..और चारो ही स्थानों पार चार तीर्थ..क्रमशः..कर्णप्रयाग..नंदप्रयाग..देवप्रयाग और रुद्रप्रयाग..स्थापित है..लेकिन जब गंगाजी की चारो धाराए..ऋषियों की तपोभूमि..ऋषिकेश में पर्वत-मालाओं से निकालकर मैदान में आती है तो एक होकर हरिद्वार में समतल मार्ग से बहती हुयी..बिभिन्न तीर्थ-स्थानों से होकर अंततोगत्वा गंगासागर स्थान पर समुद्र में मिल जाती है.. तो वहा केवल साफर का जल-ही-जल दिखाई देता है और गंगाजी का नामोनिशान मिट जाता है..!
ऐसे ही परम-पिता-परमात्मा का एक ही नाम और एक ही रूप-स्वरूप है..जिसको विभिन्न-पन्थो में भिन्न-भिन्न उपमाओं से लिपिवद्ध किया है..और उसको प्राप्त करने के अनेको रास्ते बतलाये है..लेकिन जब तक किसी सच्चे--पूर्ण-सदगुरू की कृपा-दृष्टि नहीं प्राप्त होती है..तब-तक सत्य की खोज अधूरी ही रहती है..जैसे ही पूर्ण-सदगुरू से मेल होता है..मत-मतान्तरो का एकीकरण हो जता है..और खोज की राह समतल-सपाट हो जाती है..और गंतव्य तक पहुचने में देर नहीं लगाती है..!
गंतव्य तक पहुंचकर जब सत्य से प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है..तब साधक की शारी
पहिचान और नामोनिशान मिट जाता है..!
..फिर तो ..जिधर देखते है..उधर तू-ही-तू दिखलाई पड़ता है..!
अपनी हस्ती बिलकुल मिट जाती है..!

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