MANAV DHARM

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Tuesday, February 1, 2011

भाव का भूखा हू .मै ...!


भाव का भूखा हू मै...और भाव ही एक सार है...!
भाव से मुझको भजे तो भव से बड़ा पार है..!,,,भव से बड़ा पार है..!!
भाव--बिन कोई मुझे पुकारे ..मै कभी सुनता बही....?
तेर भक्ति--भाव की करती मुझे लाचार है...!..भाव का भूखा हू .मै ...!
अन्न--जल और वस्त्र--भूषण कुछ न मुझको चाहिए..!!
आप हो जाए मेरे बस यही मेरा सत्कार है...!!..भाव का भूखा हू मै...!
भाव--बिन सर्वस्व भी दे दे तो मै कभी लेता नहीं..!
भाव से एक फूल भी दे दे तो मुझे स्वीकार है...! भाव का भूखा हू मै..!
भव जिस जन में नहीं उसकी मुझे चिंता नहीं..?
भाव वाले भक्त का भरपूर मुझपर भार है..भाव का भूखा हू मै...!
बाँध देते भक्त मुझको प्रेम की जंजीरों से..!
इसलिए होता मेरा इस धरा पर अवतार है....भाव का भूखा हू मै....!!

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