संत रविदासजी ने अपनी निर्मल-भक्ति और ताप-साधना से चरितार्थ किया.."जब मन चंगा..तो कठौती में गंगा..!"
उन्होंने मीराभाई जैसी भक्त को..अपने सामने चमडा भिगोने के लिए रखी पानी की छोटी-सी कठौती में गंगाजी को प्रगट करके सोने का दूसरा कडा दे दिया..!
मीराबाई इस अलौकिक दृश्य को देखकर उनसे इतना प्रभावित हुई कि..उन्होंने संत रव्ज्दास्जी को अपना गुरु बना लिया..और गुरु-दीक्षा में प्राप्त ज्ञान को पाकर धन्य हो गयी..!
मीराबाई ने भजन गया....
"पायो जी ! मै तो नाम रतन धन पायो..!
बस्तु अमोलन दीन्ह मेरे सद्गुरु..कर कृपा अपनायो..!
चोर न लेवे..खर्च न होवे दिन-दिन बढ़त सवायो..!
जनम-जनम की पूंजी पायी..जग का सभी गवायो..!
सत की नाव खेवानिया सद्गुरु..भव-सागर तर आयो..!
मीरा के प्रभु गिरधर-नागर.. हर्ष-हर्ष जस गायो..!
तो भाव यह है कि..सच्चे गुरु के मिलने से ही हम इस दुर्गम संसार--सागर से पार हो सकते है..!
उन्होंने मीराभाई जैसी भक्त को..अपने सामने चमडा भिगोने के लिए रखी पानी की छोटी-सी कठौती में गंगाजी को प्रगट करके सोने का दूसरा कडा दे दिया..!
मीराबाई इस अलौकिक दृश्य को देखकर उनसे इतना प्रभावित हुई कि..उन्होंने संत रव्ज्दास्जी को अपना गुरु बना लिया..और गुरु-दीक्षा में प्राप्त ज्ञान को पाकर धन्य हो गयी..!
मीराबाई ने भजन गया....
"पायो जी ! मै तो नाम रतन धन पायो..!
बस्तु अमोलन दीन्ह मेरे सद्गुरु..कर कृपा अपनायो..!
चोर न लेवे..खर्च न होवे दिन-दिन बढ़त सवायो..!
जनम-जनम की पूंजी पायी..जग का सभी गवायो..!
सत की नाव खेवानिया सद्गुरु..भव-सागर तर आयो..!
मीरा के प्रभु गिरधर-नागर.. हर्ष-हर्ष जस गायो..!
तो भाव यह है कि..सच्चे गुरु के मिलने से ही हम इस दुर्गम संसार--सागर से पार हो सकते है..!
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