मन मथुरा दिल द्वारिका काया काशी जान..दसवां द्वारा देहरा तामे ज्योति पहचान..!
..अर्थात..यह मन ही मथुरा है जहां क्रूर राजा कंस विराजते है..दिल ही द्वारिका है..जहां मुरली--मनोहर--गोपी--कृष्णजी विराजते है..मानव शरीर ही काशी है..जहां शिवजी की कृपा से मुक्ति मिलाती है...इस मानव--काया में दसवां--द्वार..यानी तीसरी आँख ही वह दलहीज है जहां हम अपनी जीवन--ज्योति को देख--पहचान--जान सकते है..!!
..कहने का तात्पर्य यह है कि...यह मानव--तन बहुत कीमती है..जिसमे मन बेलगाम घोड़े की तरह है..ह्रदय बहुत कोमल है क्योकि वहा पर सत्य--नारायण--परमात्मा का निवास है..यह शरीर ही मुक्ति प्राप्त करने का साधन है ..और "आज्ञा--चक्र" (उपनयन) ही ज्योति--स्वरूप परमात्मा को देखने--पहचानने की दलहीज (दरवाजा) है..!
..धन्य है हम सब भक्त--गण जिन्हें यह दुर्लभ मानव--तन प्रभु की अहेतु की कृपा से मिला है..हमें निरंतर भजन--सुमिरन करना चाहिए..!!
..अर्थात..यह मन ही मथुरा है जहां क्रूर राजा कंस विराजते है..दिल ही द्वारिका है..जहां मुरली--मनोहर--गोपी--कृष्णजी विराजते है..मानव शरीर ही काशी है..जहां शिवजी की कृपा से मुक्ति मिलाती है...इस मानव--काया में दसवां--द्वार..यानी तीसरी आँख ही वह दलहीज है जहां हम अपनी जीवन--ज्योति को देख--पहचान--जान सकते है..!!
..कहने का तात्पर्य यह है कि...यह मानव--तन बहुत कीमती है..जिसमे मन बेलगाम घोड़े की तरह है..ह्रदय बहुत कोमल है क्योकि वहा पर सत्य--नारायण--परमात्मा का निवास है..यह शरीर ही मुक्ति प्राप्त करने का साधन है ..और "आज्ञा--चक्र" (उपनयन) ही ज्योति--स्वरूप परमात्मा को देखने--पहचानने की दलहीज (दरवाजा) है..!
..धन्य है हम सब भक्त--गण जिन्हें यह दुर्लभ मानव--तन प्रभु की अहेतु की कृपा से मिला है..हमें निरंतर भजन--सुमिरन करना चाहिए..!!
Thoda sa please dohe ke prasang ke baare mein bhi vyakhya kre
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