नाम और इसके अखंड--सुमिरन की महिमा..
-----------------------------------------गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते है.." हे अर्जुन ! तू सभी कालो में मेरे नाम का सुमिरन कर और युद्ध भी कर...तस्मात् सर्वेषु कालेषु नमस्सुमार युद्धं च.."
विचार करने की बात है कि परम--पिता--परमात्मा का ऐसा कौन सा नाम है जिसका अखंड--अवाध रूप से सोते--जागते--उठाते--बैठते--खाते--पीते--सभी काम और भीषण युद्ध भी करते हुए उसका निरंतर स्मरण किया जाय..??
हम जियाने भी नाम मुख से बोलते है..वह बोलते ही समाप्त हो जाते है..इसलिए यह अखंड या अक्षर ( क्षरित न होने वाला) नाम नहीं है..!
हम जो भी नाम मुख से उच्चारित करते है..वह तीन अपरा वाणियो से बोला जाता है..जो क्रमशः मध्यमा..पश्यन्ति और बेखरी के नाम से जानी जाती है..!
यह क्रमशः ह्रदय..कंठ और जिह्वा से उच्चारित होती है..इसमें व्यक्ति लिपायमान होता है..! जबकि प्रभु का नाम निर्लेप और योग--माया में समाया हुआ है..जो चौथी वाणी..अर्थात "परा--वाणी " से प्रतिध्वनित (vibrate) हो राहा है..और जो कण--कण में समाया हुआ है..! गुरु नानकदेव जी कहते है....
"एको सुमिरो नानका जल००थल रहे समय ..दूजा कहे सुमिरिये जन्मे ते मर जाय.."
अर्थात..संपूर्ण श्रृष्टि में एक ही नाम समाया हुआ है..उसी का सुमिरन करना चाहिए..किसी दुसरे नाम का नहीं..क्योकि यह मुख से बोलते ही समाप्त हो जाता है..!
यहि प्राणों कि वाणी है..!
-----------------------------------------गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते है.." हे अर्जुन ! तू सभी कालो में मेरे नाम का सुमिरन कर और युद्ध भी कर...तस्मात् सर्वेषु कालेषु नमस्सुमार युद्धं च.."
विचार करने की बात है कि परम--पिता--परमात्मा का ऐसा कौन सा नाम है जिसका अखंड--अवाध रूप से सोते--जागते--उठाते--बैठते--खाते--पीते--सभी काम और भीषण युद्ध भी करते हुए उसका निरंतर स्मरण किया जाय..??
हम जियाने भी नाम मुख से बोलते है..वह बोलते ही समाप्त हो जाते है..इसलिए यह अखंड या अक्षर ( क्षरित न होने वाला) नाम नहीं है..!
हम जो भी नाम मुख से उच्चारित करते है..वह तीन अपरा वाणियो से बोला जाता है..जो क्रमशः मध्यमा..पश्यन्ति और बेखरी के नाम से जानी जाती है..!
यह क्रमशः ह्रदय..कंठ और जिह्वा से उच्चारित होती है..इसमें व्यक्ति लिपायमान होता है..! जबकि प्रभु का नाम निर्लेप और योग--माया में समाया हुआ है..जो चौथी वाणी..अर्थात "परा--वाणी " से प्रतिध्वनित (vibrate) हो राहा है..और जो कण--कण में समाया हुआ है..! गुरु नानकदेव जी कहते है....
"एको सुमिरो नानका जल००थल रहे समय ..दूजा कहे सुमिरिये जन्मे ते मर जाय.."
अर्थात..संपूर्ण श्रृष्टि में एक ही नाम समाया हुआ है..उसी का सुमिरन करना चाहिए..किसी दुसरे नाम का नहीं..क्योकि यह मुख से बोलते ही समाप्त हो जाता है..!
यहि प्राणों कि वाणी है..!
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