MANAV DHARM

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Saturday, February 26, 2011

"समत्व-योग" क्या है..?

अध्यात्म का वाही "शिखर-पुरुष" है ..जो "समत्व-योग" में स्थित है..!
"समत्व-योग" में स्थित साधक साक्षात ब्रह्म के सामान है..!
वह सद्फुरुदेव जी महान है..जिसकी कृपा से एक साधक इस सोपान तक पहुँच जाता है..!
"समत्व-योग" की सिद्धि अनन्य-भक्ति ...प्रखर --साधना ..अवाध-तपश्चर्या और निर्लिप्त-कर्म के अक्षुन्य-संयोग का फल है..!
"समत्व-योग" क्या है..?
यह वाणी का विषय नहीं ..अपितु करनी का विषय है..!
शाब्दिक मीमांसा की जाय तो यह स्पष्ट है कि..समानता की स्थिर-स्थिति को समत्व-योग कहते है.!
प्रश्न यह उठाता है की..समानता और उसकी स्थिर-स्थिति से आशय क्या है..?
आध्यात्मिक द्रष्टि से देखे तो..इस स्थूल पिंड में समाई हुई सुक्ष्म चेतना (प्राण) का पान-अपान की क्रिया में समान-रूप से आना--जाना ही समत्व-योग है..!
जब तक गुरु-कृपा से साधक की श्रुति(मन) का शब्द(ब्रह्म) से मेल नहीं होता..तब तक इस समत्व- योग की सिद्धि असंभव है..!
इस प्रकार आध्यात्मिक साधना ..एक प्रकार से शिष्य का गुरु से..श्रुति का शब्द से..जीव का ब्रह्म से.और .पान-अपान का सामान से मेल-मिलाप की अप्रतिम- अलौकिक साधना है.!
यही.."हंस-योग-प्रकाश" है..!..जिसे हम UNION WITH LIGHT भी कहते है..!
..आईये....एक सच्चे साधक की भाति सदगुरुदेव जी की सेवा करते हुए इस अलौकिक सिद्धि- सोपान तक पहुचने का सत्प्रयास करे..!

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