कथनी मीठी खाड़-सी करनी विष-सी होय....!
कथनी छोड़ करनी करे विष से अमृत होय..!!.....तो भाई..साधना कथनी का नही ..बलिक करनी का विषय है..! कहने--सुनाने में इसमें मिठास है..लेकिन करने में इसमें जहर--पीने जैसी तकलीफ है..! जो कथनी छोड़ कर चुप--चाप करनी अर्थात..तत्त्व--साधना करते है वह इस जहर को अमृत--तुल्य बना देते है..!!
..इसलिए एक सच्चे साधक को सदैवे अंतर्मुखी होकर आत्म--तत्त्व की साधना करनी चाहिए..! गुरु--कृपा से यह साधना फलीभूत होते ही इससे प्रस्फुटित होने वाला ज्ञान--रूपी प्रकाश स्वतः ही मुखरित होने लगता है..! धन्य है वह भक्त..जिसे यह गुरु--कृपा सहज में ही सुलभ है..!!
कथनी छोड़ करनी करे विष से अमृत होय..!!.....तो भाई..साधना कथनी का नही ..बलिक करनी का विषय है..! कहने--सुनाने में इसमें मिठास है..लेकिन करने में इसमें जहर--पीने जैसी तकलीफ है..! जो कथनी छोड़ कर चुप--चाप करनी अर्थात..तत्त्व--साधना करते है वह इस जहर को अमृत--तुल्य बना देते है..!!
..इसलिए एक सच्चे साधक को सदैवे अंतर्मुखी होकर आत्म--तत्त्व की साधना करनी चाहिए..! गुरु--कृपा से यह साधना फलीभूत होते ही इससे प्रस्फुटित होने वाला ज्ञान--रूपी प्रकाश स्वतः ही मुखरित होने लगता है..! धन्य है वह भक्त..जिसे यह गुरु--कृपा सहज में ही सुलभ है..!!
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