MANAV DHARM

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Saturday, February 12, 2011

सत्य-प्रीति और समर्पण

सीता का श्रीराम के प्रति नैसर्गिक प्रेम...!
रामचरितमानस में संत तुलसीदासजी कहते है...
"प्रभुहि चितई पुनि चितई माहि..राजत लोचन लोल..!
खेलत मनसिज मीन जुग..जणू विधि मंडल दोल..!!
गिरा नयन मुख पंकज रोकी ..प्रगट न लाज निसा अवलोकी..!
लोचन जल रह लोचन कोना..जैसे परम कृपिन कर सोना..!
सकुची व्याकुलता बढ़ी जानी..धरि धीरज प्रतीति उर आनी..!
तनु०मनु-बचनु मोर प्रनु साँचा..रघुपति-पद-सरोज चितु रांचा..!
तो भगवान सकल उर वासी..करिहहि मोहि रघुवर के दासी..!
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू..सो तेहि मिलहि न कछु संदेहू..!
प्रभु तन चितई प्रेम प्रनु ठाना..कृपानिधान राम सबु जाना..!
सियहि विलोकि तकेहू धनु कैसे..गरुण परम लघु वयालाही जैसे..!
....रामायण कि इन चौपाइयो का सार तवा यह है..कि . जिसका जिस पर सत्य--प्रेम होता है..उसको वह मिलने में कोई संदेह नहीं है !
इसलिए हर प्रभु-प्रेमी भक्त को प्रभुजी के श्री-चरणों में सत्य-प्रीति और समर्पण रखना चाहिए..!

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