झुकाते वही है..जिसमे जान होती है..!
अकड़े रहना तो मुर्दे की पहचान होती है..!!
भाव स्पष्ट है..जो जीवंत..विनीत ..निर्मल और सदाशयी होते है..वही अपने सदगुणों के कारण झुक जाते है..पाखंडी कदाचारी और अहंकारी लोग मुर्दे की तरह हमेशा अकड़े रहते है..!!
रामचरितमानस में संत तुलसीदासजी कहते है......
बरसाही जल्द भूमि नियराये..जथा नवहि बुध विद्या पाए..!
...चुकी बादलो में जल-रूपी जान है..इसलिए वह नीचे धरती पर आकर बरसते है..ऐसे ही एक बौद्ध (ज्ञानी) जब ज्ञान (विद्या) प्राप्त कर लेता है..तो सभी सदगुण उसके प्रभामंडल से ज्ञानालोक के रूप में प्रस्फुटित होने लगते है.!
भव यह है कि..मनुष्य सदगुणों कि खान है..यही उसकी जान और पहचान है..और इसी का ही उसको विकास करना है..जिससे वह सही अर्थो में मानव कहला सके..!
अकड़े रहना तो मुर्दे की पहचान होती है..!!
भाव स्पष्ट है..जो जीवंत..विनीत ..निर्मल और सदाशयी होते है..वही अपने सदगुणों के कारण झुक जाते है..पाखंडी कदाचारी और अहंकारी लोग मुर्दे की तरह हमेशा अकड़े रहते है..!!
रामचरितमानस में संत तुलसीदासजी कहते है......
बरसाही जल्द भूमि नियराये..जथा नवहि बुध विद्या पाए..!
...चुकी बादलो में जल-रूपी जान है..इसलिए वह नीचे धरती पर आकर बरसते है..ऐसे ही एक बौद्ध (ज्ञानी) जब ज्ञान (विद्या) प्राप्त कर लेता है..तो सभी सदगुण उसके प्रभामंडल से ज्ञानालोक के रूप में प्रस्फुटित होने लगते है.!
भव यह है कि..मनुष्य सदगुणों कि खान है..यही उसकी जान और पहचान है..और इसी का ही उसको विकास करना है..जिससे वह सही अर्थो में मानव कहला सके..!
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