आध्यात्मिक जीवन के अनुभव और अनुभूतियाँ..>>
-----------------------------------------------------
" अध्यात्म का शाब्दिक अर्थ अपने--आपका अध्ययन करना है..!
अपने--आपका से तात्पर्य अपने स्थूल शरीर ( पिंड ) और सुक्ष्म चेतना ( मन ) से है..!!
मन इन्द्रियों का राजा ( मोक्ष का द्वार ) है..और स्थूल शरीर साधना का घर ( साधन--धाम ) है..! इसप्रकार अपने आपको जानने के लिए हमें परम--पिटा--परमेश्वर से यह अद्भुत--अकौकी साधन प्राप्त हुआ है..!
हम बहिर्मुखी होकर चर्म--चक्षुओ से वाह्य जगत में जो कुछ भी देखते है या अपनी कर्मेन्द्रियो से जो कुछ भी करते है .. उससे हमें संसार का अनुभव प्राप्त होता है..जबकि अपनी चेतना की आँखों से जब हम अंतर्मुखी होकर अंतर्जगत में जाकर अपनी चेतना से चेतना में स्थित होकर चेतना में लीं हो जाते है तो इसा हमें "अनुभूति" प्राप्त होती है..!
इसप्रकार भौतिक (वाह्य) जगत के लिए हमारा स्थूल शरीर (पिंड) और मन गतिमान रहता है..जबकि आध्यात्मिक (अंतर्जगत) के लिए हमारी चेतना (conscience) ही सर्वोपरि माध्यम है..!
जब तक हम गुरु की शरणागत नहीं होते..तब तक हमारी चेतना सोई हुयी पड़ी रहती है..और जैसे ही सदगुरुदेव जी का सानिध्य प्राप्त होता है..हमारी सामीप्य मुक्ति हो जाती है और हमें आत्मा--ज्ञान रूपी महौषधि प्राप्त होती है....साधक फिर पीछे मुड कर नहीं देखता..बस आगे ही आगे बढ़ता जाता है...!
..स्पष्तः हमारे शरीर के दो पहलू है..एक भौतिक और दूसरा अध्यात्मिक..! एक से अनुभव और दुसरे से अनुभूति प्राप्त होती है..!
व्यक्ति अपने अनुभव का सदुपयोग अपनी आजीविका और कर्त्तव्य--कर्मो को करने में करता है..जबकि अनुभूतियो की गहराई में जाकर साधक इस संसार-सागर से पार हो जाता है...!
"
-----------------------------------------------------
" अध्यात्म का शाब्दिक अर्थ अपने--आपका अध्ययन करना है..!
अपने--आपका से तात्पर्य अपने स्थूल शरीर ( पिंड ) और सुक्ष्म चेतना ( मन ) से है..!!
मन इन्द्रियों का राजा ( मोक्ष का द्वार ) है..और स्थूल शरीर साधना का घर ( साधन--धाम ) है..! इसप्रकार अपने आपको जानने के लिए हमें परम--पिटा--परमेश्वर से यह अद्भुत--अकौकी साधन प्राप्त हुआ है..!
हम बहिर्मुखी होकर चर्म--चक्षुओ से वाह्य जगत में जो कुछ भी देखते है या अपनी कर्मेन्द्रियो से जो कुछ भी करते है .. उससे हमें संसार का अनुभव प्राप्त होता है..जबकि अपनी चेतना की आँखों से जब हम अंतर्मुखी होकर अंतर्जगत में जाकर अपनी चेतना से चेतना में स्थित होकर चेतना में लीं हो जाते है तो इसा हमें "अनुभूति" प्राप्त होती है..!
इसप्रकार भौतिक (वाह्य) जगत के लिए हमारा स्थूल शरीर (पिंड) और मन गतिमान रहता है..जबकि आध्यात्मिक (अंतर्जगत) के लिए हमारी चेतना (conscience) ही सर्वोपरि माध्यम है..!
जब तक हम गुरु की शरणागत नहीं होते..तब तक हमारी चेतना सोई हुयी पड़ी रहती है..और जैसे ही सदगुरुदेव जी का सानिध्य प्राप्त होता है..हमारी सामीप्य मुक्ति हो जाती है और हमें आत्मा--ज्ञान रूपी महौषधि प्राप्त होती है....साधक फिर पीछे मुड कर नहीं देखता..बस आगे ही आगे बढ़ता जाता है...!
..स्पष्तः हमारे शरीर के दो पहलू है..एक भौतिक और दूसरा अध्यात्मिक..! एक से अनुभव और दुसरे से अनुभूति प्राप्त होती है..!
व्यक्ति अपने अनुभव का सदुपयोग अपनी आजीविका और कर्त्तव्य--कर्मो को करने में करता है..जबकि अनुभूतियो की गहराई में जाकर साधक इस संसार-सागर से पार हो जाता है...!
"
abhi anubhutio me hi atke ho?
ReplyDeleteye batao ki anubuti ya anubhav ke pare kya hai???