MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Sunday, February 6, 2011

ध्यान क्या है..?

चित्त-वृत्तियों का निरोध करके ध्येय वास्तु को अपनी चेतना में धारण करने और उसको



आज्ञा--चक्र में निर्लिप्त होकर देखना व् उसका चिंतन करना ही "ध्यान" है..!



आज्ञा--चक्र का ज्ञान गुरु की शरणागत होने पर ही प्राप्त होता है..!



इसलिए कहा है कि



"गुरु--बिनु होय कि ज्ञान ...ज्ञान कि होई विराग बिनु .. गावहि वेद--पुराण सुख कि लहहि हरि--भगति बिनु..!!"



अर्थात...बिना गुरु के आज्ञा--चक्र का ज्ञान नहीं होता..और बिना वैराग्य के ज्ञान भी नहीं होता..! इस कि महिमा वेद--पुरानो ने भली--भाति गई है..और कहा है कि बिना प्रभु की भक्ति किये सुख नहीं प्राप्त होता..!!



जब हम्मारे सत्कर्मो के पुण्य उदित होते है और प्रभु की कृपा होती है तब गुरूजी के दर्शन होते है..!..."जब गोविन्द कृपा करि..तब गुरु मिलिया आइ.."



गुरूजी.. की कृपा से हमें अष्टांग--योग का ज्ञान प्राप्त होता है..जो अध्यात्म की रीढ़ है..!





स्कन्द--पुराण में कहा गया है कि..

"ध्यान--मुलं गुरुमुर्तिः पूजा--मुलं गुरुपादुका मंत्र--मुलं गुरुवाक्यम मोक्षमुलम गुरुकृपा..!"

इसप्रकार ध्यान..पूजा..मंत्र और मोक्ष...इन चारो ही क्रियाओं में गुरूजी की महान--उपस्थिति है..! स्पष्ट है..गुरूजी की मूर्ति का ही ध्यान ..गुरूजी की पादुका की पूजा....गुरूजी द्वारा दिया गया शब्द ही मंत्र और गुरूजी की कृपा ही मुक्ति का कारक है..!!

..ॐ श्री सद्गुरुचरण A कमलेभ्यो नमः....!

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