कलियुग का पांचवा आश्चर्य..एक दोमुहा हाथी...है..!
महाभारात्कील में सहदेव जी ने इसे देखकर भगवान श्रीकृष्णजी से पूछा...कि..भगवन..यह क्या है..??
भगवान श्रीकृष्ण जी ने जबाब दिया.....यह कलियुग की राजनीतिक..सामाजिक..चारित्रिक पतन का प्रतीक है..!
कलियुग में राजनीति इतनी पतानोंमुखी हो जाएगी कि..परदे के सामने कुछ और तथा परदे के पीछे कुछ और ही खेल होगा..! कथनी--करनी में जमीन-आसमान का फर्क
होगा..जिससे व्यक्ति की सामाजिक और चारित्रिक स्थिति दूषित और शर्मनाक होगी..!
आज के युग में यह सब अक्षरशः सत्य चरितार्थ हो रहा है..! हम जिधर देखते है..अंधेरगर्दी..भ्रष्टाचार..कदाचार..अनाचार..दुराचार..पक्छापात..लुट-खसोट..उत्पीडन..आतंक..ह्त्या..मार-पीत--छीनाझपटी..जोर-जबरदस्ती..शाह-मात..इत्यादि विकृतिया उत्पन्न हो गयी है..जो आज की सामाजिक--आर्थिक--चारित्रिक..राजनीतिक व्यवस्था पार पूर्णतः हावी है..!
ऐसे घोर-कलिकाल में केवल डूबते को तिनके का सहारा मात्र ही एक रास्ता शेष है..जो मानव को इन सभी आपदाओं और विकृतियों से रक्षा करने में सक्षम है..!
इसी तिनके का ज्ञान हमें समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष की शरण में आने पार प्राप्त होता है..!
एक बार जब हम गोबर्धन पर्वत के नीचे आ जाते है..तब हमारी पूरी रक्षा हो जाती है..!
इसलिए कहा है....
"आपदाहर्तारम दातारम सर्वसम्पदाम....लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो--भूयो नमाम्यहम.."!
समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष साक्षात् गोविन्द ही होते है..इसलिए...हमें इसकी खोज काके उनकी शरणागत होना चाहिए..!
महाभारात्कील में सहदेव जी ने इसे देखकर भगवान श्रीकृष्णजी से पूछा...कि..भगवन..यह क्या है..??
भगवान श्रीकृष्ण जी ने जबाब दिया.....यह कलियुग की राजनीतिक..सामाजिक..चारित्रिक पतन का प्रतीक है..!
कलियुग में राजनीति इतनी पतानोंमुखी हो जाएगी कि..परदे के सामने कुछ और तथा परदे के पीछे कुछ और ही खेल होगा..! कथनी--करनी में जमीन-आसमान का फर्क
होगा..जिससे व्यक्ति की सामाजिक और चारित्रिक स्थिति दूषित और शर्मनाक होगी..!
आज के युग में यह सब अक्षरशः सत्य चरितार्थ हो रहा है..! हम जिधर देखते है..अंधेरगर्दी..भ्रष्टाचार..कदाचार..अनाच
ऐसे घोर-कलिकाल में केवल डूबते को तिनके का सहारा मात्र ही एक रास्ता शेष है..जो मानव को इन सभी आपदाओं और विकृतियों से रक्षा करने में सक्षम है..!
इसी तिनके का ज्ञान हमें समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष की शरण में आने पार प्राप्त होता है..!
एक बार जब हम गोबर्धन पर्वत के नीचे आ जाते है..तब हमारी पूरी रक्षा हो जाती है..!
इसलिए कहा है....
"आपदाहर्तारम दातारम सर्वसम्पदाम....लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो--भूयो नमाम्यहम.."!
समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष साक्षात् गोविन्द ही होते है..इसलिए...हमें इसकी खोज काके उनकी शरणागत होना चाहिए..!
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