MANAV DHARM

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Thursday, February 24, 2011

"ध्यान" अपनी बिखरी हुयी शक्तियों को समेटकर "ध्येय " बस्तु का एकाग्रता से चिंतन करने की अलौकिक विधा है..!

"ध्यान" अपनी बिखरी हुयी शक्तियों को समेटकर "ध्येय " बस्तु का एकाग्रता से चिंतन करने की अलौकिक विधा है..!
जब तक व्यक्ति बहिर्मुखी होकर सांसारिक कार्यो में लिपायमान रहता है..उसकी शक्तिया बिखरती जाती है..जैसे ही वह अंतर्मुखी होकर ध्यान-योग से अपने अन्दर प्रवेश करता है..तो उसकी स्थिति कछुवे जैसी हो जाती है..!
यह एक ऐसी अद्भुत-अलौकिक क्रियायोग है..जिसे व्यक्ति समय के तत्वदर्शी महान-पुरुष के सानिध्य में आकर ही जान सकता है..!
ध्यान करने की विधि और ध्येय बस्तु का ज्ञान स्वयं नहीं जाना जा सकता..यह तत्वदर्शी-गुरु द्वारा ही बताया और जनाया जाता है..!

जैसे  कछुआ हमेश  अपने  अंगो  को  अन्दर  की ओर  समेटे रहता है..जब  आवश्यकता  होती  है  तभी  वह   बाहर  निकालता  है..वैसे  ही  जब  हम  अपनी  सभी इन्द्तियो  के  दरवाजो  को  बंद  करके अपनी  चेतना  को भृकुटी के मध्य आज्ञा-चक्र में  एकाग्र  करते  है..तो  हम  अंतर्मुखी  होने  लगते है..बाहरी दुनिया  की  मानसिक--शारीरिक  भगा-दौड़ क्षण-भर के लिए  बंद होती  सी  होती  प्रतीतहोती  है.. !
हम  इस  मानव देहमें  कुल नौ  दरवाजो  से  खुले  हुए  है..जब तक  यह  सभी  दरवाजे  बंद  नहीं  होगे..हम  बहार--ही  रिसते  रहगे..और  हमारी शक्ति  बेकार  ही  बिखरती  रहेगी..जैसे  ही अभ्यास-योग  से  गुरु द्वारा  बताये  हुए  साधन  को  हम  अपनाने  में  लग  जाते  है..हमारी  चित्त-वृत्ति  अंतर्मुखी  होने  लगाती  है..!
इस  अभ्यास से  चेतना  का  बंद  दरवाजा..दसवा-द्वार..खुलने  लगता है..और  हमें  अलौकिक शक्तियों  की  अनुभूति  होने  लगाती है..! यही  शांत-चेतना..अंतर्मन  की  प्रकृति  है.!
कछुवे  की  आयु  इसीलिए  बहुत  अधिक  होती  है..क्योकि  वह  हमेशा  अन्दर  की  ओर  सिमटा  रहता है..ठीक  इसीप्रकार  जब   हम  भी  अपने  अन्दर  ही  पैठ  बना  लेगे  तो  हमारी  आयु और  शक्ति  भी  बढ़  जायेगी...!
इसीलिए  कहा है....
कथनी  मीठी  खांड-सी..करनी  विष-सी होय..कथनी  छोड़  करनी  करे..विष से  अमृत  होय .!!
..यही  मानव-जीवन  की  महानतम  उपादेयता  है..!

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