लीक-लीक गाड़ी चले..लीके चले कपूत..!
तीन शख्स उलटा चले..साधू--सिंह--सपूत..!!"
जैसे गाड़ी सड़क और रेलगाड़ी पटरी पर दौड़ती है..वैसे की बने--बनाये और घिसे--पिटे रास्ते पार चलनेवाले लोग कुपुत्र होते है.. इस लीक से हटाकर क्रमश संत--पुरुष..शेर और सुपुत्र ..यह तीन शख्स बिलकुल विपरीत-मार्ग पर चलते है..!
"संत-पुरुष" वह है..जिनका दिल--दिमाग पूर्ण विश्रांति और वैराग्य में रहता है और जो सहज-शान्ति ..सहज--संतुष्टि..सहज--सुख..सहज-ज्ञान..सहज--योग..सहज-समाधि में लीं रहते है..!
"शेर" जंगल का रजा होता है..अपना शिकार खुद करता और उसका भक्षण करता है और भक्षण किये शिकार की तरफ फिर पीछे मुड़कर नहीं देखता..हमेह्सा निर्भीकता से आगे ही देखता जाता है..!
"सुपुत्र" वह है..जो स्वाध्याय ,,सत्प्रयास और सत्कर्म से अपना रास्ता खुद बनाते है..हमेह्सा मौलिक चिंतन करते है..सुख--दुःख में सम-भव रखते रहते हुए सन्मार्ग पर स्वयं चलते और दूसरो को भी ले चलते है..!
भाव यह है..कि आधुनिक दुनिया की भीड़ में सब भाग--दौड़ कर रहे है..सही रास्ता कुछ--कुछ लोगो को ही सुझाता है..यही सत्पुरुष लोग सन्मार्ग पर चलाकर इस दुर्गम संसार-सागर से पार हो जाते है..!
तीन शख्स उलटा चले..साधू--सिंह--सपूत..!!"
जैसे गाड़ी सड़क और रेलगाड़ी पटरी पर दौड़ती है..वैसे की बने--बनाये और घिसे--पिटे रास्ते पार चलनेवाले लोग कुपुत्र होते है.. इस लीक से हटाकर क्रमश संत--पुरुष..शेर और सुपुत्र ..यह तीन शख्स बिलकुल विपरीत-मार्ग पर चलते है..!
"संत-पुरुष" वह है..जिनका दिल--दिमाग पूर्ण विश्रांति और वैराग्य में रहता है और जो सहज-शान्ति ..सहज--संतुष्टि..सहज--सुख..सहज-ज्ञान..सह
"शेर" जंगल का रजा होता है..अपना शिकार खुद करता और उसका भक्षण करता है और भक्षण किये शिकार की तरफ फिर पीछे मुड़कर नहीं देखता..हमेह्सा निर्भीकता से आगे ही देखता जाता है..!
"सुपुत्र" वह है..जो स्वाध्याय ,,सत्प्रयास और सत्कर्म से अपना रास्ता खुद बनाते है..हमेह्सा मौलिक चिंतन करते है..सुख--दुःख में सम-भव रखते रहते हुए सन्मार्ग पर स्वयं चलते और दूसरो को भी ले चलते है..!
भाव यह है..कि आधुनिक दुनिया की भीड़ में सब भाग--दौड़ कर रहे है..सही रास्ता कुछ--कुछ लोगो को ही सुझाता है..यही सत्पुरुष लोग सन्मार्ग पर चलाकर इस दुर्गम संसार-सागर से पार हो जाते है..!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteएकदम सत्य , इस कथन मे बडे भाव छुपे हैं, साधु जो होते हैँ वो सारे संसार से बिमुख हो कर अन्तर्मुखी होते हैं उन्को अप्ने अन्तर्मन मे सारे आनन्द और शन्ती मिल्ती है इस तरह वो सान्सारिक् लोग से उल्टे दिखते है , इसी तरह से शेर जब शिकार करता है तब पहेले वो कुछ कदम उल्टा चलता है तब जा कर वो शिकार को दबोचता है और ठीक उसी तरह आज तक जो भि महान पुरुष हुवे है उन्होने संसारीक रास्तो से हटके अलग दिशा मे कदम को बढाया और संसारको ऊशी दिशा मे ले जाने मे सफल हुये है, समाजमे बडे बडे परिवर्तन करने मे सक्छम ब्यक्तियों जैसे प्रह्लाद, ध्रुव , हनुमान, राम, कृष्ण, इश मसिह, बुद्ध, मीरा बाइ, आदी इत्यादी महापुरुशो ने वो रास्ते चुने जिस पर कोइ नही चला था ठीक उसी तरह जो सपुत होते हैं वो भि संसार से अलग नये रास्ते पे चल्ते है और संसार को नयाँ राह दिखाते है जैसे चार्ल्स दार्बिन, गलिलेओ, कुछ देशो के राजा नेताये जिस्के मार्गदर्शन पर आज भि लोग चल रहे है, ऐसे लोगो ने अप्ने कुल का नाम रोशन किया है तभी तो उन्हे कहते है "सपुत" । वो लोग बनी बनाइ राह पर नही चलते है अपनी एक अलग राह बनाते है । शुरु मे बिरोध तो सब करते है पर अन्त्य मे जीत उसिका होता है और लोग ऊस्के बनाये रास्तो पर चलने लगते है । दुसरो के बनाये रास्तो पर चलना उन्को गवरा नही ।।। दुसरो के लिखी बाते को रटना उन्को गवरा नही " वो अप्नी बिचार शक्ती से सारी दुनियाँ को मोड सकते है इन्ही लोगो को सपुत कहते हैं । जय श्री सत्चिदनन्द
ReplyDeleteअन्त्य मे " एकम सत्यपाल द्वितियो नास्ती "