"ॐ" क्या है..?
..जैसा कि मुह से इस शब्द को उच्चारित करते समय हमें अनुभव होता है.....कुल तीन अक्षर इसमें मिलते है..अ..उ..म..अर्थात..अकार..उकार..मकार..!
"अ" ह्रदय से मध्यमा--वाणी से .."उ" कंठ से पश्यन्ति वाणी से ..और "म" जिह्वा से बखरी वाणी से उच्चारित होकर निकलती है..!
इसप्रकार इन तीनो वाणियो को हम "अपरा" वाणी कहते है..जिसमे मानव--शरीर के तीन अंग..ह्रदय..कंठ..जिह्वा का संयोग--संगम होता है..अतः यह "जूठा" हो जाता है..!
इस "ॐ" अक्षर के ऊपर जो बिन्दु है..उसका हम उच्चारण नहीं कर पाते और न ही सामान्यतः इसका अर्थ कोई जनता है..यह..निर्लिप्त है और सबका साक्षी है..अ-उ-म में जुडा हुआ है फिर भी अलग--थलग सा है..! यही एक रहस्य है..!!
अ+उ+ म से तात्पर्य..कमशः ब्रह्मा..विष्णु..महेश से है..जो "परा--शक्ति" माँ गायत्री के तीन पाद है..!
"ॐ" के ऊपर जो बिन्दु है..वह "एकाक्षर" ब्रह्म का प्रतीक है..जो सबमे समाया हुआ है..
और जो एक कल्प में ब्रह्मा..विष्णु..महेश को उत्पन्न कर देने के बाद भी शेष रहता है..वह ही सब बीजो का बीज परम--पिटा-- परमात्मा का प्रतीक स्वरूप अंकित किया जाने वाला "बिन्दु" है..!
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी कहते है...
"शिव--बिरंच--विष्णु भगवाना उपजहि जासु अंश ते नाना..!
ऐसेही प्रभु सेवक बस अहही..भगत हेतु लीला तन गहही..!!"
अर्थात ...ब्रह्मा-विष्णु--महेश सहित तमाम जिसके अंश से उत्पन्न होते है..वाही पर--ब्रह्म परमेह्स्वर भक्तो कि रक्षा हेतु लीला का शरीर धारण करते है और सेवा के बस में रहते है..!!
..इसप्रकार यह स्पष्ट है..कि जन--सामान्य को परमात्मा के सर्व--व्यापक नाम का ज्ञान नहीं है..और जो भी नाम उच्चारित करते है..वह सब अपरा--वाणी से बोली जाती है..जो बोलते है समाप्त हो जाती है..इसका "आदि " और "अंत" दोनों ही होता है..जबकि "परा-वाणी" जीव के प्राणों का विषय है..जो सब बीजो का बीज परमात्मा का पावन--नाम है और जिसका ज्ञान समय के तत्वदर्शी महान पुरुष से प्राप्त होता है.. !!
...यह मानव का ही सौभाग्य है..कि वह इसको प्राप्त करके अपना कल्याण कर सकता है..! सत्य ही कहा है...
"राम--राम" सब कोई कगे नाम न चीन्हे कोय..!
नाम चीन्हे सदगुरु मिले भेद बतावे सोय..!!"
..जैसा कि मुह से इस शब्द को उच्चारित करते समय हमें अनुभव होता है.....कुल तीन अक्षर इसमें मिलते है..अ..उ..म..अर्थात..अकार..उकार..मकार..!
"अ" ह्रदय से मध्यमा--वाणी से .."उ" कंठ से पश्यन्ति वाणी से ..और "म" जिह्वा से बखरी वाणी से उच्चारित होकर निकलती है..!
इसप्रकार इन तीनो वाणियो को हम "अपरा" वाणी कहते है..जिसमे मानव--शरीर के तीन अंग..ह्रदय..कंठ..जिह्वा का संयोग--संगम होता है..अतः यह "जूठा" हो जाता है..!
इस "ॐ" अक्षर के ऊपर जो बिन्दु है..उसका हम उच्चारण नहीं कर पाते और न ही सामान्यतः इसका अर्थ कोई जनता है..यह..निर्लिप्त है और सबका साक्षी है..अ-उ-म में जुडा हुआ है फिर भी अलग--थलग सा है..! यही एक रहस्य है..!!
अ+उ+ म से तात्पर्य..कमशः ब्रह्मा..विष्णु..महेश से है..जो "परा--शक्ति" माँ गायत्री के तीन पाद है..!
"ॐ" के ऊपर जो बिन्दु है..वह "एकाक्षर" ब्रह्म का प्रतीक है..जो सबमे समाया हुआ है..
और जो एक कल्प में ब्रह्मा..विष्णु..महेश को उत्पन्न कर देने के बाद भी शेष रहता है..वह ही सब बीजो का बीज परम--पिटा-- परमात्मा का प्रतीक स्वरूप अंकित किया जाने वाला "बिन्दु" है..!
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी कहते है...
"शिव--बिरंच--विष्णु भगवाना उपजहि जासु अंश ते नाना..!
ऐसेही प्रभु सेवक बस अहही..भगत हेतु लीला तन गहही..!!"
अर्थात ...ब्रह्मा-विष्णु--महेश सहित तमाम जिसके अंश से उत्पन्न होते है..वाही पर--ब्रह्म परमेह्स्वर भक्तो कि रक्षा हेतु लीला का शरीर धारण करते है और सेवा के बस में रहते है..!!
..इसप्रकार यह स्पष्ट है..कि जन--सामान्य को परमात्मा के सर्व--व्यापक नाम का ज्ञान नहीं है..और जो भी नाम उच्चारित करते है..वह सब अपरा--वाणी से बोली जाती है..जो बोलते है समाप्त हो जाती है..इसका "आदि " और "अंत" दोनों ही होता है..जबकि "परा-वाणी" जीव के प्राणों का विषय है..जो सब बीजो का बीज परमात्मा का पावन--नाम है और जिसका ज्ञान समय के तत्वदर्शी महान पुरुष से प्राप्त होता है.. !!
...यह मानव का ही सौभाग्य है..कि वह इसको प्राप्त करके अपना कल्याण कर सकता है..! सत्य ही कहा है...
"राम--राम" सब कोई कगे नाम न चीन्हे कोय..!
नाम चीन्हे सदगुरु मिले भेद बतावे सोय..!!"
wonderful explanation __/\__
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