MANAV DHARM

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Friday, February 18, 2011

मानव जीवन एक अनमोल निधि है..!

मानव जीवन  एक  अनमोल  निधि  है..!
आज  का  विश्व  सूचना--प्रोग्योगिकी--दूर-संचार  क्रांति  के  अधुनातन  युग  में  है..!
इस  क्रान्ति  ने  सभी  पूर्ववर्ती  क्रांतियो  को  बहुत  पीछे  छोड़  दिया  है..!
हमें  जीवन  के  हर  क्षेत्र  की  घर  बैठे  इलेक्ट्रोनिक डेलिवेरी  के  माध्यम  से  शारी  अधारभूत  सेवाए  और   जानकारिय  प्राप्त  हो  जाती  है..!
इसप्रकार  हमारे  अनमोल समय..धन..संसादन..परिश्रम  की  बचत  होती  है  और भटकन  से मुक्ति मिल  जाती  है..!
इतनी  अत्याधुनिक सुविधाए  और  तकनीक  प्राप्त  हो  जाने  के  बाबजूद  भी  आज  का  मानव  अपनी  मानसिकता  में  कितनी तरक्की कर  पाया  है.?  .
आज  भी "धर्म"  के  नाम  पार  मानव  के  मानसिकता  कुंठित ही  है..!
सवामी विवेकानंद  जैसे  महँ-पुरुष  ने  भारत-माँ  की  कोंख  से  जन्म  लेकर  दुनिया  को  अध्यात्मा  का  रास्ता  दिखाया..और  समझाया  कि.."RELIGION  IS  REALIZATION
..अर्थात....धर्म  अनुभूति  का विषय  है..!
इस  श्रृष्टि  के  कण--कण  में  एक  ऐसी  अप्रतिम  सत्ता ..सार्वभौम-तत्व  रमा  हुआ  है..जिसे  केवल  मानव  ही जान--समझ  और  अनुभव  कर  सकता  है..!
क्योकि  मानव  के  पास  मन--तंत्र  है..इसीलिए वह  मानव  कहलाता है..!
जलचर--थलचर--नभचर  में  केवल  एक  ही  जीवन  जीवंत  है..!
विज्ञान  कहता  है.".जिस  MATTER  का
घनत्व(DENSITY) ज्यादा  होता  है..उसका  आयतन(VOLUME) उतना ही कम  होता  है.." 
जैसे  वर्फ  का  घनत्व  ज्यादा  है..तो  उसका  फैलाव  कम  है..पानी  का  घनता  कम  है  तो  उसका  फैलाव  ज्यादा  है..इसीप्रकार  वाष्प  का  फैलाव  अत्यधिक  होने  से  उसका  घनत्व  बहुत  ही न्यून है..!
तात्पर्य  यह  है  कि..स्थूल  वर्फ  से  सुक्ष्म  पानी  और  उससे  भी  सूक्ष्मतम  वाष्प..यह  ऐसा  स्टार  है..जो  इस  सृष्टि  के  जीवो..स्थावर..जलचर--नभचर--थलचर..की  प्रास्थिति  को  स्पष्ट  करते है..!
सिंहावलोकन  किया  जय..तो  यह  स्पष्ट  है..की  स्थूल  शरीर वाले  मानव  में  सूक्ष्म गति वाले  मन  रूपी  चेतना  की  उपस्थिति  है..!
इसीलिए  मानव सब जीवधारियो में श्रेष्ठ है..!
सुक्ष्म चेतना   (आकाश-तत्त्व) क्रियाशील होकर  शनै--शनै  नीचे  आकर इस  भूलोक में  मानव-रूपी  पिंड  में  समां गया है..और  उसी  के  माध्यम से सारी  लौकिक क्रियाये  कर रहा है..
इसप्रकार  इस  मन  में  जो  चेतना  धारित  है..वाही  हमारा  धर्मं  है..
यह  चेतना-शक्ति  ही  सभी  क्रियायो  के  मूल  में है..
हम  इसको  एक  क्रिया-विधि  से  अनुभव  कर  सकते  है..!
यहि  क्रिया-विधि  अध्यात्म  का  विषय  है..!
अपने--आपका  अध्ययन  ही  अध्यात्म  है..!
चुकी..सुक्ष चेतना  अगोचर  है..इसलिए  इसको देखने--जानने  के  लिए  हमें  एक  पथ-प्रदर्शक  की आवश्यकता  पड़ती है..जो  इस  अलख  को  पारदर्शी   कर  देते  है..!
..भव  यह  है..हम  जितना  भी  तरक्की  कर  ले...अपने-आपको जानने  के लिए  हमें  स्वयं  अपने--आप  का  ही  साधन  करना  है..और  एक  पथ--प्रदर्शक  द्रष्टा  के  सानिध्य  में  रहना है..तभी  धर्मं  की अनुभूति   प्राप्त  हो  सकती  है..!

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