MANAV DHARM

MANAV  DHARM

Saturday, February 12, 2011

मानव शरीर की प्राप्ति....

मानव शरीर की प्राप्ति से ही हमें प्रभु के इस साकार लोक में आने का परम-सौभाग्य प्राप्त हुआ है..और इसप्रकार हमें पहली मुक्ति "सालोक्य" मुक्ति प्राप्त हुई है !
..इस स्थूल शरीर (पिंड) में कुल थीं संसार है..स्थूल...सुक्ष्म और कारण..!
हाड..मांस और रक्त से बना हुआ जो ढांचा है..वह स्थूल पिंड है..!
इसमे जो चेतना (मन) है..वह सुक्ष्म आत्मा है..जो त्रिस्तरीय..मन..बुद्धि और अहंकार में समाई हुई है..! यहि संकल्प--विकल्प में पड़ी रहती है..!
..इस सुक्ष्म चेतना के अति--चेतन्य स्थिति में होने पर हम जिस लोक में पहुचाते है..वह "कारण" कहलाता है..! जहां पर जीव जब एक बार पहुँच जाता है तो उसकी सद्गति हो जाती है..क्योकि तब वह प्रामा--प्रभु के लोक और गोद में जा पहुचता है..! यही स्थान छीर-सागर के नाम से जाना जाता है.जहां पर लक्षी-नारायण विराजमान है..!
....धन्य है..हम सभी मानव...जिन्हें यह देव-दुर्लभ मनुष्य शारीर परम-प्रभु की अहेतु की कृपा से प्राप्त हुआ है..और चौरासी-लाख योनियों से त्रसित होने के पश्चात यह "सालोक्य" मुक्ति प्राप्त हुयी है..! इसकी इतनी बड़ी महिमा है..जिसे कहा नहीं जा सकता..! लेकिन मानव का यह दुर्भाग्य है..कि वह इसकी यथार्थ--स्थिति से पूर्णतः अनजान है..!

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