जर्रे--जर्रे में रमण करने वाला परमात्मा का जो पावन--नाम है..यदि उसको परम--सौभाग्य से समय के तत्वदर्शी महान--पुरुष के सानिध्य में आकर हमने जान लिया है..
तो यह हमारे जीवन की यह महानतम उपलब्धि है..!!
हम जानते है..की जब तक हमें किसी बस्तु का नाम नहीं मालूम होगा ..तब तक हम उसके रूप को जान नहीं सकते है..इसलिए हर बस्तु का नाम और उसका रूप साथ लगा रहता है..!
इसीप्रकार जब हमें परमात्मा के पवन नाम का ज्ञान हो गया है..तब उनके रूप को हम सहज में ही जान सकते है..!
जैसे मेहदी के पीछे उसकी लालिमा (रूप) छिपी है..वैसे ही नाम के पीछे नूर छिपा है..!!
संत तुलसीदासजी कहते है...
"नाम-रूप-गुण अकथ कहानी..समुझत सुखद न परत बखानी..!"
रथात....प्रभु जी के पावन-नाम और उनके रूप के गुणों का वर्णन नहीं हो सकता..यह समझाने में ही सुखद है..और वर्णनातीत है..!!
इसलिए परमात्मा का नाम और रूप सुखद अनुभूति का विषय है..!
..धन्य है वह भक्त - गन जो निरंतर नांस-सुमिरन में लगे रहते है..!!
तो यह हमारे जीवन की यह महानतम उपलब्धि है..!!
हम जानते है..की जब तक हमें किसी बस्तु का नाम नहीं मालूम होगा ..तब तक हम उसके रूप को जान नहीं सकते है..इसलिए हर बस्तु का नाम और उसका रूप साथ लगा रहता है..!
इसीप्रकार जब हमें परमात्मा के पवन नाम का ज्ञान हो गया है..तब उनके रूप को हम सहज में ही जान सकते है..!
जैसे मेहदी के पीछे उसकी लालिमा (रूप) छिपी है..वैसे ही नाम के पीछे नूर छिपा है..!!
संत तुलसीदासजी कहते है...
"नाम-रूप-गुण अकथ कहानी..समुझत सुखद न परत बखानी..!"
रथात....प्रभु जी के पावन-नाम और उनके रूप के गुणों का वर्णन नहीं हो सकता..यह समझाने में ही सुखद है..और वर्णनातीत है..!!
इसलिए परमात्मा का नाम और रूप सुखद अनुभूति का विषय है..!
..धन्य है वह भक्त - गन जो निरंतर नांस-सुमिरन में लगे रहते है..!!
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